आदमी से ढ़ेर कुकुरे पसन बा
आदमी से ढ़ेर कुकुरे पसन बा (व्यंग्य हऽ)
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आदमी के आदमी से कहां प्यार बा
लोगन के कुकुरे जिये के आधार बा।
आपन घर के लोगन से का मतलब
कुकुरे खातिर त किनाइल कार बा।
गाँव-समाज से कटल रहत बाड़न
कुकुरे भाई-बिरादर आ सरकार बा।
आदमी भुंकत-भोंकत थकि जइहें
उनके के पूछला के का दरकार बा।
कुकुर जी के मुंह देखल जरूरी बा
घर में त मैडमे जी के सरकार बा।
अपने नित्य क्रिया करत चाहे ना
कुकुर जी के 4 बजे टहलान बा।
सार,सरहज,साढ़ू के ढ़लल समय
अब कुकुर जी के एकक्ष राज बा।
सब रिश्ता-नाता कोना में धराइल
कुकुरे अब सबकर माई-बाप बा।
अगर गलती से कुकुर कहा गइल
उनकर उहां से खेदाई भी तय बा।
कुकुर मीट-मुर्गा खालें दूध पियसु
डभ साबुन शैम्पू उनके लागत बा।
अदिमी से त केहूके लगावे नइखे
कुकुरे एघरी अदिमी के सवांग बा।
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रचना स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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