कबीरदास:कवि, संत अउरी समाज सुधारक
कबीरदास:कवि,संत अउरी समाज सुधारक
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15वीं सदी में भारत के आध्यात्मिक क्षितिज पर 'कबीरदास' के रूप में एगो अइसन रहस्यवादी कवि, विचारक, सुधारक, दार्शनिक और संत के उदय भइल जे भक्तिकाल में भी निर्गुण-धारा प्रवाहित कइलन, कवनो धर्म विशेष के ना मनलन उहां के एगही सर्वोच्च ईश्वर में विश्वास जतवनी आ समाज में फइलल कुरीति कर्मकांड, भेदभाव, अंधविश्वास अउरी सामाजिक बुराईयन पर चोट कइके सामाजिक समरसता ,साम्प्रदायिक सद्भाव के मार्ग देखवनीं।
संक्षिप्त जीवन परिचय : कबीरदास जी के जनम लगभग 14वीं-15वीं शताब्दी (1398 ई.) में काशी, उत्तर प्रदेश में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के भइल रहे। मान्यता बा कि कबीर बालक रूप में 'नीरु-नीमा' के काशी के लहरतारा तालाब में एगो कमल के पुष्प के ऊपर मिललरहलन। उनकर लालन-पालन जुलाहा परिवार में रहल अउरी स्वामी रामानंद उनकर गुरू रहनीं (काशी में परगट भये, रामानंद चेताये)। औपचारिक शिक्षा त ना मिलल रहे (मसि कागद छुयो नहीं, कलम गही नहिं हाथ), एहिसे उनकर चेला लोग उनकरे वाणी के लिपिबद्ध कइलनजा। उनकर विचारधारा के 'कबीरपंथ' नाम दिहल गइल अउरी अनुयायी लोगन के'कबीरपंथी' कहाइल उनकर भाषा सधुक्कड़ी आ पंचमेल खिचड़ी हवुए। इहां के भाषा में हिंदी भाषा के सब बोलियन के शब्द मिलेला जवना में राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी व ब्रजभाषा के शब्दन के बहुलता बा। उहां के मुख्यत: छह ग्रंथ बाटे:
कबीर साखी: एकरा में साखी के माध्यम से 'आत्मा- परमात्मा' के बारे में जानकारी बाटे। ।
कबीर बीजक: एह ग्रंथ में मुख्य रूप से पद्य-भाग बाटे।
कबीर शब्दावली: इस ग्रंथ में मुख्य रूप से 'आत्मा-परमात्मा' संबंध के जानकारी बाटे।
कबीर दोहावली: एह ग्रंथ में मुख्य रूप से उनकर दोहे सम्मिलित बा।
कबीर ग्रंथावली: एह ग्रंथ में कबीरदास के पद अउरी दोहा रखल गइल बाटे।
कबीर सागर: ई सूक्ष्म वेद हवुए जेकरा में परमात्मा की लमहर-चाकर जानकारी मिलेला।
कबीरदास जी एकेश्वरवाद, निर्गुण-ब्रह्म अउरी संसार के क्षणभंगुरता के बात कइलेबानी। उनकरा विचार में राम-नाम (पूर्ण परमात्मा के वास्तविक नाम) के महिमा देखेके मिलेला। लेकिन उनकर 'राम' दशरथ-पुत्र 'राम' ना हवुवन उहां के विचार से संपूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त परम-चेतना के नाम हवुए। 'अल्लाह' अउरी 'ईश्वर' के एकही मानत रहनीं कबीर दास जी मानव-धर्म की वकालत कइनीं। उनकरा अनुसार मूर्तिपूजा, रोज़ा, ईद, मंदिर व मस्जिद से मोक्ष संभव नइखे। मुक्ति, 'ज्ञान' से ना, बल्कि 'प्रेम अउरी भक्ति' से ही संभव बा। लेकिन एकरा खातिर'योग्य गुरू' के होखल आवश्यक बा। उनकर प्रभाव सिख, हिन्दू आ इस्लाम तीनों धर्मों में देखे के मिलेला। कबीरदास जी के शांतिमय जीवन पसन रहल। उहां के सत्य, अहिंसा व सदाचार आदि गुण के पक्षधर रहनीं। आज पूरा संसार में उनकर विचार के सराहल जाला।
मगहर लीला : कबीरदास जी जीवन भर काशी में रहनीं। परंतु 120 वर्ष की आयु में कबीर काशी से अपना अनुयायियन के संगे 'मगहर' चलि गइनीं।
#सकल जन्म शिवपुरी गंवाया
मरति बार मगहर उठि धावा।#
120 वर्ष के उमिर के बाद भी 3 दिन में काशी से मगहर का सफर पूरा कइले रहनीं ।ओह समयणकाशी के धर्मगुरु लोग एगो धारणा (अफवाह) फइलवले रहल थी कि जे 'मगहर' में मरी त 'गदहा बनी अउरी जे 'काशी' में मरी तब सीधे स्वर्ग में जाई। मगहर में ही उहां के शरीर छोड़नीं। अपना मृत्यु के माध्यम से भी उहां के बड़हन सन्देश दिहनी कि मुक्ति श्रेष्ठ-कर्म से होखेला ना कि कवनो विशेष जगह पर मुवला से।
जन्त्र मंत्र सब झूठ हैं,मत भरमा जग कोय।
सार शबद जाने बिना, कागा हंस न होय। ।
अर्थात कर्म के महत्व दिहले बानी इहां के
माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर।
करका मनका डारि दे, मन का मनका फेर। ।
निर्गुण-ब्रह्म के उपासक रहनीं..सच्चा साधक होखला के चलते ओह समय के समाज के अंधकार से प्रकाश के तरफ ले जाये के काम कइनीं ।
अल्ला राम की मति नाहीं, तहं कबीर ल्यो लाई।
अर्थात कबीरदास जी समन्वयवादी कवि रहनीं एहिसे द्वैत--अद्वैत के फेरे में ना पड़नीं।
कुछ प्रेरणादायी दोहे : कबीरदास जी अपन सामाजिक व आध्यात्मिक विचार पद अउरी दोहा के माथ्यम से दिहले बानी। एक व्यक्ति ना होके'सम्पूर्ण व्यक्तित्व' बानी। कबीर न हिन्दू न मुसलमान रहनीं। उहां के दुनियावी होखला के बावजूद जाति-धर्म से ऊपर रहनी...बानी भी। कबीर एगो अइसन शख्सियत रहनीं जवना पर हिन्दू अउरी मुसलमान दूनन लोगन हैं के दावा रहल लेकिन उहां के निरपेक्ष रहिके संसार के एगो आईना देखा दिहले बानी:
• "हरिमोर पिउ, मैं राम की बहुरिया" त कभी कहतानी कि, "हरि जननी मैं बालक तोरा"। (ईश्वर परमपिता बानी आ देश सब जीव उनकर सन्तान।)
• "जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग, तेरा साईं तुझ में है, तू जाग सके तो जाग।" (ईश्वर के खुद के भीतर खोजला के जरूरत बा।)
• "जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान।।" (कवनो आदमी से उनकर जाति ना पूछेके चाहीं लेकि ज्ञान के बात करेके चाहीं काहेंसे कि आदमी अपना ज्ञान से बड़ होखेला ना कि अपना जाति से।)
• "साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।" (व्यर्थ के बातों में समय बरबाद कइल ठीक नाहवुए। साधु यानि अच्छा लोगना के मुख्य बात पर ही ध्यान देबे के चाहीं)
• "दोस पराए देखि करि, चला हसन्त हसन्त,
अपने याद न आवई, जिनका आदि न अंत।"
(पराये में दोष ना खोजेके चाहीं, खोजहीं के बाटे त अपने में खोजऽ)
• "पत्थर पूजें हरि मिले तो मैं पूजूँ पहार।
तातें तो चक्की भली, पीस खाये संसार।।"
(कवनो भी देवी-देवता के पत्थर की मूर्ति बनाके पूजा कइल शास्त्र-विरुद्ध साधना होखेला एहिसे ई निरर्थक बा।)
• "कांकर पाथर जोड़िके मस्जिद ली बनाय।
ता चढ़ मुल्ला बांग दे क्या बहरा हुआ ख़ुदाय।।" (ईश्वर सर्वव्यापी व सर्वज्ञ बाड़न। उनकर आह्वान करे खातिर ऊंचा आवाज केणजरूरत नइखे। अन्तरात्मा के पुकारे पर्याप्त बाटे।)
• "बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि, हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।" (तोल मोल के बोल।)
• "अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप, अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।" (संतुलन आवश्यक है। मध्यम मार्ग श्रेष्ठ बाटे।)
• "बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं फल लगे अति दूर।" (केहू के ओहदा या आकार में छोट-बड़ होखल महत्वपू्र्ण नइखे , महत्वपूर्ण बाटे त उनकर उपयोगिता केतनाबाटे।"
• "साईं इतना दीजिये, जा में कुटुम समाय,
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधू ना भूखा जाय।।" (धन भी सीमित ही रहे के चाहीं।)
• "चाह मिटी, चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह,
जिसको कछु नहीं चाहिए, वही शहनशाह।" (महत्वाकांक्षी होखल ग़लत नइखे लेकिन ओकरे खाति अंधा दवुड़ में लागि के अपन सुख-चैन गंवावल सही नइखे।)
• "धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।।" (सब काम अपने समये से ही होई)
• "चिंता ऐसी डाकिनी, काटि करेजा खाए।
वैद्य बिचारा क्या करे, कहां तक दवा खवाय॥" (चिंताग्रस्त व्यक्ति अल्पायु हो जाला, एहिसे चिन्ता मत करीं।)
• "मालिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार। फूले फूले को चुन लिए, कलि हमारी बार।।" (जीवन क्षणभंगुर बा। जे आज जवान है, कल बूढ़ हो जाई अउरी एक दिन मिट्टी में मिल जाई।)
कबीरदास जी अइसन सैकड़न शिक्षाप्रद पद्य अउरी दोहा दिहले बानी जेकरा से हरमेशा मानव-जाति के मार्गदर्शन करत रही।
कबीर के दर्शन में एकतरफ शंकराचार्य के अद्वैतवाद, महावीर के सत्य व अहिंसा अउरी महात्मा बुद्ध के कर्मकाण्ड-विरोध व मूर्तिपूजा-निषेध लउकता त दूसरका ओर इस्लाम के भाईचारा व सूफियाना निर्गुण-भक्ति देखेके मिलेला। वस्तुत: कबीरपंथ एगो सम्पूर्ण मानव-धर्म बाटे जवना में ज्ञान, भक्ति, सत्य, अहिंसा, शांति, प्रेम, सद्भाव, सदाचार, समानता, समरसता और धर्मनिरपेक्षता का अद्भुत संगम बा। आज मानवता जाति, धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर खून की होली खेल जा रहल बा । आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद और जातिवाद से पूरा विश्व लहूलुहान हो रहल बा। एह समय में 'कबीरवाद' एगो अइसन सार्वभौम दर्शन बाटे जवन मानव-जाति खातिर संजीवनी से कम नइखे। एकरा के अपना के ना अपन भौतिक व आध्यात्मिक उन्नति सुनिश्चित होई बल्कि अशांति, अस्थिरता अउरी विश्व-युद्ध के कगार पर खड़ा एह मायावी संसार में विश्वबंधुत्व अउरी शांतिपूर्ण-सह-अस्तित्व का मार्ग भी प्रशस्त होई ।
आलेख स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया, उत्तर प्रदेश
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