कुछ तुहंई देखावऽ

कुछ तुहंई देखावऽ
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कुछ करहीं के बा तऽ
कइके देखावऽ
बहुत नीमन बाड़ऽ त
आदत सुधारऽ
बनल, बोलल छोड़ऽ
सबके अपनावऽ
बहुत ज्ञानी बाड़ऽ त
दूसरो के सिखावऽ
सबकेहू आपने हवुए
जनि बिलगावऽ
अदिमी के जात हवऽ
अदिमिये रहऽ
अगर कर सकल तऽ
ज्ञान फइलावऽ
सबकर खून लाले बा
जनि अंझुरावऽ
वाद-विवाद हो जावऽ
ओके संझुरावऽ
सबकर राहि एके बाऽ 
जनि भटकावऽ 
जिनिगी के का भरोसा
प्यार बरसावऽ 
केहू कुछवू कहत रहे 
तूंहई निभावऽ
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रचना स्वरचित अउरी मौलिक 
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय 
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

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