लागता गदर मचावहीं के परी
लागता गदर मचावहीं के परी
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काहें भुलइलऽ भोजपुरिया हो
भोजपुरी अपनावे के परी।
ना कामे आई भाषा फिरंगी हो
फिरंगी कवनो काम ना करी।
कवना लोभ में परल बाड़ऽ हो
अन्त में काम आपने करी।
हमनी के महतारी भोजपुरी हो
माई के धियान रखे के परी।
दूई-दिन के नवकी बहुरिया हो
महतारी अस केहू ना करी।
नेता बनिके जवन माकताड़ऽ हो
वोट खातिर घरे आवे के परी।
हर देश अपने भाषा के बोले हो
भोजपुरी अब बोले के परी।
भोजपुरी के गोदी में बढ़लऽ हो
भोजपुरी के बढ़ावे के परी।
काहें माई-माटी के भुलइलऽ हो
कबो माटी में जाये के परी।
भाषा भोजपुरी से जियलऽ हो
फर्ज तोहरो निभावे के परी।
भोजपुरी के मान्यता नइखे हो
बात संसद में बोले के परी।
तोहरा बोले के हिम्मत नइखे हो
फेरू चित्तू पाण्डे बने के परी।
अगर एहूसे बात नाहीं बनी हो
आजाद,भगत से कहेके परी।
धरती भोजपुरिया बीरन के हो
बोलावा तोहरा देबे के परी।
खुसुर-फुसुर ना करे आवेला हो
लागता गदरे मचावे के परी।
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रचना स्वरचित,मौलिक
अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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