काहें हमके जनमवलऽ
काहें हमके जनमवल ए बाबूजी!!
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काहें हमके जनमवल ए बाबूजी
का रहल एकरा में हमरो कसूर।
काहें हमके जनमवलू ए मइया
काहें हम भइनी पतलो के झूर।
होते जनमवा सब मुंह मोड़लस
काहें हमहीं भइनी सबके नासूर।
होते बबुववा बाजेला बधइया
हमरे बेरी सब चुप होखे जरूर।
भेदभाव जनमते काहें होखेला
बाबूजी कवन बाटे हमरो कसूर।
हमरे भइयवा के कान्हीं ढ़ोवाला
हमके राखेलऽ अपनहूं से दूर।
बबुआ घूमेलन खेत-खरिहनिया
हमके सिखावेलऽ रहेके सहूर।
सब केहू देखिके जरेला हमके
लड़िकी भइनी हमार का कसूर।
देशे-देशे हमार दूलहा खोजाई
दुनिया समाज तिलक लेई जरुर।
अउरी बबुनी पानी के बुला हई
बचावे परी नाहीं त फूटिहें जरुर।
कवन कसूर हमरो बाटे बाबूजी
काहें के हमहीं कहाइला मजबूर।
कबो-कबो हमरा के इहे बुझाला
लड़की के जीवन श्राप बा जरूर।
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रचना स्वरचित,मौलिक अउरी अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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