हम जैसे हैं वैसे ही ठीक ह्

हम जैसे हैं,जहां हैं, वहीं ठीक हैं:-
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समझो हम अपने गांव में ठीक-ठाक हैं
तेरे शहर में देखो जीने की शर्तें बहुत हैं।

अब हम अपनी सरजमीं पर ही ठीक हैं
दूसरों की सरजमीं पर दुश्वारियां बहुत हैं।

अब हम अपने घर चाहे जैसे हों ठीक हैं
झूठी आधुनिकता में नहीं जी सकते हैं।

हम कम पढ़े हैं तो भी लिखे भी ठीक हैं
देखो पढ़ाकू लोगों में इफ-बट बहुत हैं।

हम गांव के किसान-मजदूर ही ठीक हैं
तेरे पैसे वाले VIP'S में नखरे बहुत हैं।

हम तो हर हाल में खुलकर ही हंसते हैं
तेरे शहर-सेल्फी में हंस भी नहीं पाते हैं।

जनाब हम झोपड़ी ,खपरैल में ठीक हैं
तेरे शहरी टाईल्सों में रोग ही रोग भरे हैं।

मानो मेरे यहां जीने के रास्ते भी बहुत हैं
तेरे शहर में तो सिर्फ घुटन ही घुटन हैं।
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रचना स्वरचित,मौलिक एवं अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

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