गाँव के थाती-श्रृंखला-18

गाँव के थाती-श्रृंखला-18
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बहुत पहिले जब खेत बोवल जात रहल तब आपस में बहुत तालमेल रहल करे कि कवना मउजा में कवन फसल बोवल जाव..एह बात खातिर गांव के एगो बहुत नीमन अनुभवी किसान जे भी रहे उनकरा से जाके निहोरा कइल जात रहे..तब उहां के पूरा तइयारी के साथे पगरी बान्हि के एगो चउतरा पर बइठसु जवन तनी उंचा होखे जमीन से आ बाकी लोग में कुछ जमीन पर बिछावल दरी पर बइले त कुछ लोग खड़ा भी रहल करत रहे..ओहिजे सब अपन-अपन विचार रखे फिर मुख्य अनुभव वाला किसान अपन राय सबके बतावे फिर त उहे फसल बोवल जात रहे...जइसे बांण के खेतन में पियरी माटी रहेला तब ओमें बाजरा-अगहनिया, अरहर, मकई...वगैरह-वगैरह बोवल जाव..जवना खेत में बरसात के पानी ना लागत रहे ओकरा में अरहर के संगे अगहनिया, पटुवा, मूंग, उरदी बोवात रहल।
अब जवना मउजा में मकई,कांकर, खीरा बोवात रहे त तमाम तरह के जंगली जनावर जइसे हरना, बनसुवरा, लिलगाइ..घड़रोज,झुंड में धावा बोलि के सब फसल के तहस-नहस. ..बर्बाद कर देत रहलन एहि कुल से बचे खातिर लखत के लखत खेतन में एकही फसल बोवल रहे आ सब अपना-अपना मचान पर पूरा इंतजाम करके रहत रहे जवना में खाना पानी मचनिये पर टांगल रहत रहे कि कवनो जिया-जन्तु, सियार-माकुर आके खा मति जाव लेकिन रात-बिरात त केहू खेत अगोरे खातिर ना रहे..सब लोग घरे चलि जात रहलन।
कबो-कबो अइसन होखे कि रतिये में जंगली जिया जंतु पलखत पाइ के फसल कुछ खाके कुछ तुरि-तारि के तहस नहस कर देत रहलन...तब किसान करो त का करो...एकर भी उपाय कइल जात रहल जइसे...धूहा....कपड़ा के. लकड़ी के, धूहा के टाटी.....मतलब कि धूहा के बनावे में भी कुछ लोग माहिर होखसु आ सबकर उहे बनावसु...उनकरा केहें भीड़ लागत रहे लेकिन उ आदमी के कवनो अहं ना रहत रहे आ ना त एह घरी लेखा पइसा के फेरा में परत रहे...सब बहुत नीमन से सम्बंध निभावत रहे....गजब के नेह-छोह,प्यार, दुलार, एकता रहत रहे जवना के कवनो हिसाबे ना रहत रहे। धूहा बनावे में कुछ लकड़ी, हरेठा कुछ कपड़ा जवन फाटल-पुरान धोती-कुरता, साड़ी वगैरह रहे ओहिके से बनावल जात रहल...
जब सबकर धूहा बनि जात रहल आ फसल करिहांइ भर आवत रहे तब खेत में मचान के कुछे दूरी पर धूहा गाड़ल जात रहे....अइसन बनावल रहत रहे जइसे लागे कि कवने किसान एकदमे लाल ललछहूं लाठी लिहले खेत में दवुरता केहू के मारे खातिर चाहे लखेदले बाटे कवनो जनावर के...एकदमे से जियत तस्वीर लउके...अब रात-बिरात कवनो भी जंगली पशु खेत में नोकसान करे चाहे खाये चबाये खातिर जइसहीं खेत में घुसे त ठिठक के चकचिहा के अपन नजर चारो ओर दवुरावे ए तब तक धूहा पर नजर परि जाव फिर का ओकरा ई थोड़े ना जानकारी रहे कि झूठिया धूहा खड़ा कइल गइल बा डेरवावे खातिर....अब उ काहें के रुके खेतन में ..सबकर जान के मोह होखेला...भागे सरपट लंक लगाइ के जेतना ओकर जांगर होखे...अइसहीं सब लोगन के संगे होखे आ सबकर खेत के फसल बांचि जात रहल।अगर सेकराहे जनावर लोग धावा बोलसु तब सब अपन-अपन मचान पर रहबे करे आ अपना के बचावे खातिर लाठी,डंडा, गुपुती, टांगी, हंसुवा अउरी त अउरी एगे बड़हन टीन के डब्बा राखल रहे...सब एके संगे हाहाहा...धरऽ धरऽ..मारऽ-मारऽ...हैहेहाठऽ....ढ़ब ढ़ब धमड़-धमड़ ढ़ब....लगातार हल्ला होखे कुछ लागे ...तब जनावरन के बुझा जाव कि एहिजा जीव ले लिहेसन भागसऽ रे #जान बचे त लाखो पाये # ..सब अपन-अपन भाषा में आ इशारा से अइसन भागे कि लागे कि सबका पतौखा धइ लिहलस...एकदम ई सिवाने छोड़ि देबे कु परे ।
हर गांवन में एकाध गो टोकना भी जरूर होखेलन जिनकरा के करजिभा भी कहल जाला...उनकर इहे काम रहेला कि सबकर खेत-खरिहान निहारत रहेलन आ जिनकर खेत खूब छतियाफार लागल अपना नजर पर चढ़ा के कुछवू टोकि जे दिहलन तब फसल के अब कल्याने बा त अइसन करजिभवन टोकनन से बचे के भी उपाय कइल जात रहल..जइसे कि सबकरे घरे माटी के हांड़ी पुरान-धुरान जरुरे रहे काहें से कि ओहघरी अइसन नवाई ना रहे लोग घइली-गगरी, सुराही, मेटा में पानी रखि के पियत रहलन त कवनो परकार के पानी वाला रोग ना होखे, त उ हांड़ी के पूरा उजर रंग से रंगल जाव ओकरे बाद लाल,करिया के टीका कइल एगो बड़ डंडा में ढ़ुका के खेत में गाड़ल रहे त टोनहो बुझि जासन कि एहिजा अब दालि गले वाला नइखे। फिर उ सब दूसर सिवान धइ लेत रहलन सब।
आलेख स्वरचित अउरी मौलिक
@अप्रकाशित। सर्वाधिकार सुरक्षित
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश

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