दिल में रहमत की हसरत लिए चलता हूं

दिल में रहमत की हसरत लिए चलते हैं
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हम तो बड़े अदब से सिर झुकाए हुए हैं
वो समझते रहे कि ,हम डर खाये हुए हैं।

हमारी फितरत है कि,हम बनते नहीं हैं
मेरे पास क्या कुछ है, कहते भी नहीं हैं।

क्या लेकर आये हो , क्या लेकर जाओगे
जिस बात पर इतराते,वो सबके पास है।

उतर कर जमीं पर देखो,समझ जाओगे
तेरा वजूद दरिया क्या पोखर भी नहीं है।

दिल में रहमत की,हसरत लिए चलते हैं
तुम्हें लगता है हम कुछ नहीं समझते हैं।

पर आप सिर्फ फायदे का सौदा करते हैं
लेकिन हम जानबूझकर घाटे में रहते हैं।

हम वो साहिल हैं जो,मझधार में जीते हैं
मझधार में फंसे को साहिल पर लाते हैं।

हमें दर-बदर के दिखावे में नहीं रहना है
राम का नाम लेकर मुझे चलते जाना है।

होगा वही जो जिसके भाग्य में लिखा है
तो दिखावे की आपाधापी क्या करना है।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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