पढ़ि लिख ल ए बबुआ
पढ़ लिख ल ए बबुआ:--
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काम धाम त लागले रही
पढ़ - लिख के तूं हो जा सही।
पइसा रुपिया में का दम बा
पढ़ले -लिखला में सब बा
चाहे खायेके चिकन मिली
चाहे केतनो रुखर सूखर मिली
पहिरे के कपड़ा एगो दूगो होखे
पढ़िहा ललनवा दिलो जान से
नाहीं त कइसे जनबा तूंहवू
अमरित महोत्सव के नाम के
पढ़लके के कारन अम्बेडकर जी
रचि दिहलन देशवा के संबिधान
ज्योतिबाफुले, सावित्री बाई फुले
जानल जालें पढ़इये के नाम से
नरेन्द्र नाथ विवेकानंद कहइलन
जाइके शिकागो में U.S.के हराइ के
देशवा जब गुलाम रहृल हमनी के
राममोहन,विद्यासागर,गांधी बाबा
लड़त रहलन पढ़इये के बल पर
ना त देशवा में करोड़न रहलन
खाइ पीही के रहस बिना गम के
भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद
जनलन अधिकार अपन पढ़ि के
ओइसहीं अबो झंख मारतबानीजा
करोड़न भोजपुरी बिना भाषा के
छोटे छोटे भाषा पवलस जगह
संविधान के आठवीं अनुसूची में
हमनी के भोजपुरिया समाज बाटे
तरसत अपन अधिकार भाषा के
आईं सब केहू मिलि जुलि के साथे
लिहिंजा भोजपुरी के अधिकार
शामिल करवाके आठवीं अनुसूची में
एहिसे कहिले हमहूं अबो ले पढ़िहा
एकरा खातिर कतनो दुख सहिहा
ना त बचाइ पइबा अपन अधिकारवा
घूमत रहबा पीढ़ी दर पीढ़ी बबुआ
बनिके बड़कवन के तूंहवू बनिहरवा
मानि लिहा वंचित अकेला के बतिया
नाहीं त वंचित शोषित रहिये जइबा
फुटपाथ अउरी तम्बू के रहबा असरवा।
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रचना स्वरचित,मौलिक,अप्रकाशित
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली, बलिया, उत्तरप्रदेश
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