कि निशां अभी वहीं पड़े हैं
....कि निशां अभी वहीं पड़े हैं:-
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यादों के कारवां से मैं जा रहा था
यादों के कुछ निशान वहीं पड़े थे।
डूबकर अतीत की गहराइयों में वे
आप बीती दास्तान बयां कर रहे थे।
पूछ लिया मैंने यहां कैसे हैं ये निशां
बताया उसने लोग आते अनगिनत थे।
रौंदते हुए फिर भी बचे हैं ये निशान
शरीर पर मेरे हजारों निशान पड़े थे।
क़ातिल, लुटेरे , कपटी करते रहे सैर
दर्द बहुत होता था पर सहते रहे थे।
मरहम भी लगा जाते तुम्हारे ही पैर
पैरों की गर्माहट भी मुझे साल रहे थे।
खुश था चलो कोई अपना साथ था
तेरा अतीत क्या वर्तमान भी साफ थे।
इसीलिए अब तेरी किस्मत साथ है
तेरे जन्म का समय , स्थान ग़लत थे।
तभी तेरी परेशानियों का जन्म हुआ
किस्मत द्वारा हम अवश्य छले गये थे।
तभी सभी सपने तेरे चकनाचूर हुए
आखिर परिश्रम तुमने भी तो किये थे।
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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