निर्गुण नाहीं सगुण चाहीं

हमरा के निर्गुण नाहीं सगुण चाहीं
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जबले पियवू गइलन परदेशवा
बुझाते नइखे हमरा के का चाहीं।

विरह में मतिया हेराइ गइल बा
केतना रोईं, रोवहूं बदे लोर चाहीं।

हित नात सब आइके समझावेला
धीर धइके तोहरे अब रहेके चाहीं।

हम उनका विरह में जरत बानी
आ घर के लोगन के रुपये चाहीं।

हम धन - सम्पदा के का करब
हमके बस उनकर साथ चाहीं।

हमके ना त कवनो आस चाहीं
ना केहूवे के अब  विश्वास  चाहीं।

बइरकंटी  के  कांट  में  बानी  हम
हमके प्यार  वाली  बरसात चाहीं।

ना बंगला गाड़ी न राजपाट  चाहीं
उ  जहां रहिहें  उनके  साथ चाहीं। 

शापित जिनिगी जी  के का करब 
रहब वन-बिझ में बस साथ चाहीं।

आडियो,वर्चुअल भरमावन  हवुवे
हमरा के परगट आ साक्षात चाहीं।

बइठल लोर  बहावत रहीं  हरदम 
ना  एइसन  हमके आघात  चाहीं।

एइसन जिनगी जियला से नीमन
एगो हलाहल के अब शीशी चाहीं। 

रोवल धोवल हमरा वश के नइखे 
हमरा के त उद्धव ना स्याम चाहीं।

जेवन देखलहीं नइखीं उ का सुनीं
हमरा परगटे जवन  बा  उहे चाहीं।

युग युगान्तर के  दलदल  ना चाहीं 
जहां श्री चरन बाटे उ स्थान चाहीं।
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   ------राम बहादुर राय----
भरौली, बलिया, उत्तरप्रदेश

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