एहघरी आ पहिले के खेती किसानी
एहघरी आ पहिले के खेती-किसानी
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अब टैक्टर से खेत जोताता
सीडरिल से खेत बोवाता।
हर बैल अब कमे लउकता
टाड़ियो कहीं कहीं नधाता।
तीसी-बरे कहंवा बोवाता
यूरिया-डाई खेत में डालाता।
जनसंख्या ढ़ेर हो गईल बा
एहिसे डंकल बिया बोवाता।
ढ़ेर अन्न उपज करे खातिर
खेतन में खूबे ज़हर फेंकाता।
कीटनाशक डालला से खेत
के उर्वरा उसर भइल जाता।
देशी गाय सब राखत रहल
अब जर्सी गाय राखल जाता।
खेती-किसानी में मित्र जीव
सब बिलुप्त होखल जाता ।
अब नया पीढ़ी के लोग के
खेती-बारी से दूरे भागता।
पहिले कमे मिलावटी रहल
शुद्ध घीवो केकरा भेंटाता।
देशी आम के अमावट बने
अब लंगड़ा दशहरी चलता।
आदमी भी डंकले भइल
नीमन-बाउर कहां बुझाता।
गिद्ध,मैना आ गौरैया,चोंचा
चिल्होर अब केने लउकता।
रोपनी-सोहनी होखत रहे
एकरे बदले दवाई फेंकाता।
बांस-बंसहट,मचिया सब
अब बहुत कमे लउकता।
खेत-खरिहान कहां बाटे
बेचि-बेचि फ्लैट खरीदाता।
ओखर-मूसर से चलत रहे
अब त मिक्सर में पिसाता।
जांत-सील-लोढ़ा,ढ़ेंकुली
छपटी के मशीन नापाता।
लेकिन ढ़ेर लोग रोगी बा
डॉ कूटहीं पीसे के कहता।
झोरी में भूजा खात रहलें
अब खदोनी से सब खाता।
पानी सब लोटा पियत रहे
अब बोतले से घूंट लियाता।
देखावे के फेर में सब केहू
अपन इतिहास के भूलाता।
पहिले त इंसानियत रहल
अब त मशीने सब बुझाता।
बड़-बड़ शहर में रहताड़न
खेती त किताबे में पढ़ाता।
आधुनिक होखल ठीक बा
अपन संस्कृति के भुलाता।
देश-दुनिया देख के चलीं
खेती-किसानी काहें भुलाता।
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रचना स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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