आजकल की सच्चाई
आजकल की सच्चाई
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नहीं खुशी है न तो रुसवाई है
मेरे जीवन की यही सच्चाई है
आजकल कैसी ऋतु आई है
सावन में जेठ की धूप आई है
बताते विकास की तुरपाई है
रिश्ते-नातों में बढती खाई है
रेत की आशियां बन पाई है
अब समझो कितनी स्थाई है
कागज की कश्ती बनवाई है
किसने इससे किनारा पाई है
आजकल की जो सच्चाई है
समझने में बहुत कठिनाई है
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@ राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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