पूछता है अवकात क्या तेरी

पूछता है अवकात क्या तेरी
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वह हर बात पर बोलता है
बता तेरी है क्या अवकात।

जब भी कुछ मैं बोलता हूं
तू क्या है तेरी क्या है बात।

मैंने उससे अन्त में बोला
मैं भी तो एक इन्सान ही हूं।

परन्तु    तुम   कौन   हो  भाई
क्यों   कुरेदते  रहते  जज्बात। 

इन्सान  तो   नहीं  हो   सकते 
ये  अवकात  तूने  कब बनाई।

हम  समझते  थे  तुमको भाई
समझ  नहीं  आती  मेरी बात। 

जिसकी  होती  नहीं अवकात
वही करता  है ऐसी खुराफात।

देखा  नहीं है  अभी  तक रात
फिर क्या जाने  दिन की बात।

करता रहता घात व प्रतिघात
मगर नहीं बनती उसकी बात।

इसीलिए करता है  ऐसी बात
तू कौन तेरी क्या है अवकात।

करता रहता हैअनर्गल प्रलाप
आदमी से पूछो दिल की बात।

जाके श्मशानों देख लोगे तब
भूल जाओगे अपनी अवकात।

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राम बहादुर राय 
भरौली नरहीं बलिया उत्तर प्रदेश

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