मुझे नहीं बदलना है
जैसा वो
मेरे साथ कर रहे हैं
मैं भी वही वर्ताव
उनके साथ मैं भी तो
कर सकता हूं
परन्तु मैं ऐसा क्यों करूं
अपनी उत्कृष्ट सोच
मैं ताक पर क्यों रख दूं
उन्हें जब कभी एहसास
अपनी भूल चूक का होगा
उन्हें अफ़सोस भी होगा
रही बात कि मैं क्या करूं
मेरा यही मानना है कि
मैं छोटी सोच नहीं रखता
क्षुद्रता तो सीखा ही नहीं
रिश्तों की अहमियत देता हूं
कभी धनी गरीब नहीं देखा
किसी से भेदभाव नहीं रखा
जिन रिश्ते नातों में बंधा हूं
उसे मुझको खोना नहीं है
मगर अपने सहज भाव से
बिखरे मोती जोड़ना जानता हूं
बिखरना बिखेरना रुह में नहीं
एक एक मनके को माला में
लड़ी बनाकर पिरोना चाहता हूं
मुझे उनके जैसा नहीं बनना
मैं हर खाई पाटना चाहता हूं
अपनों को अपनाना जानता हूं
सबके साथ रहना चाहता हूं
अकेला भी चलना जानता हूं......
----------
राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश
Comments
Post a Comment