पढ़ि के का होई.....
पढ़ि के का होई---
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ए बबुआ ! का करबा रात दिन
पढ़ि के।
नेता बनि जइबा बिन पढ़ले
लड़ि के।
रातो दिन आंख गड़ाइबा तूं
अड़ि के।
क्लर्क , मस्टर, बनियो जइबा
पढ़ि के।
अधिकरियो बनिये जइबा तूं
रगरि के।
बाकिर नेताजी बिना पढ़लहीं
मंत्री होइहें।
उनकर लइका खेलइबा तूंहू
जाई घरपे।
ए बबुआ का करबा तुंहउ
पढ़ि के।
मारा मारी करा झगरा लगावा
रहि रहि के।
फिरू जमानतियो करावत रहा
चढ़ि बढ़ि के।
लड़बा परधानी ,प्रमुखी मजे से
गांव घर से।
तनिक औरी लड़ि झगड़ि लेहबा
बहरी तब।
मिलिए जाई टिकटवा ए बबुआ
बड़ पाटी से।
फिर हो जइबा सांसद,विधायक
कौनो लहर में।
गाड़ी,बंगला,नौकरो भी मिलेला
सरकार से
सब कर्मचारी लोगे पीछे घुमिहन
हाथ जोड़िके।
घूमे फिरे के चाहे जेवने करबा तूं
मुफुत रही।
लाखो करोड़ों के निधियो मिलेला
विकास के।
आई जब बुढ़ापा त पिंशिन पईबा
खईबा बैइठि के।
एहिसे त कहतानी न रहा"अकेला"
घूमा गांव घर में।
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आप सब लोगन से विनती बा कि ई रचना एगो व्यंग के रूप में बा एकरा राजनीति औरी कौनो केहू के प्रति दुर्भावना से ना लिखले बा।एहिसे यदि कौनो गलती भयल होई त करबद्ध प्रार्थना बा कि हमरा क्षमा कर देइब सभे 🙏🙏🙏
राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश
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