बीती हुई रात
वह बीती हुई रात
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उस रात तुम चली गयी चुपचाप
इस"अकेला"को अकेला छोड़ कर
देकर प्यार की ढेरों स्मृतियां
मैंने अतीत के गुनाहों को
आने वाले गुनाहों से
शून्य को ताकते देर तक जिरह किया
फिर फैसला अनिर्णित छोड़ कर
देश के बारे में सोच रहा जहां मैं रहता हूं
आते याद खिले हुए पुष्पों के अनगिनत रंग
अंततः मैंने तय कर ही लिया
सुबह किसी अपरिचित पुष्प के बारे में
जानकारी लूंगा पूरी तरह से
तुम पुनः लौटकर आओगी
यह कि मात्र अंधेरा नहीं तुम
बेहद उजली और धुली हुई सी
प्यार की अनंत आवाजों से सजी
सपनों की रंगीन दुनिया की धरातल
जैसे प्रेम में डूबी हुई औरत की तरह
राम बहादुर राय ( अकेला)
भरौली नरहीं बलिया उत्तर प्रदेश
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