स्वार्थी लोग

आज सबको अपनी पड़ी है
भले ही बाहर मौत खड़ी है।

सुख में साथ बहुतेरे होते हैं
दुख में "अकेला" छोड़ देते हैं।

सब चाहते हैं भगत पैदा हों
मगर घर वह पड़ोसी का हो ।

दुनिया की कैसी यह रीति है
जहां सिर्फ़ दौलत से प्रीति है।

जो बात करते हैं आजाद की
उनके पास गांधी की नीति है।

जिसे पढना नहीं आता है वह
पैसे की बदौलतपर पढ़ रहा है।

जो पढ़ने में अव्वल दर्जे का है
वह जाहिलों का दर्द ढो रहा है।

इमानदारी का उदाहरण जो था
सलाखों में बेजुबान बोल रहा है।

जिसपर जिसने भरोसा किया है
वही उसे बाजारों में तोल रहा है।

क्या कहा जायेगा इस जमाने को
सही को ग़लत वह बोल रहा है।

जो हमारी ही भाषा बोल रहा था
वही विलायती बोली बोल रहा है।

रिश्ते नातों की भी कोई कद्र नहीं
सब कुछ पैसे से उसे तौल रहा है।
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राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली,नरहीं, बलिया,उत्तरप्रदेश

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