मेरी इल्तज़ा

हमें क्या दिक्कत है 
कितने भी दोस्त बनाओ।

बस एक इल्तज़ा है
उन्हें मेरी तरह न सताओ।

हमें क्या दिक्कत है
तुम मुझे कितना तड़पाओ।

सिर्फ यही इल्तज़ा है
उन्हें मुझसा नहीं तड़पाओ।

हमें क्या दिक्कत है
तुम मुझ पर इल्ज़ाम लगाओ।

सिर्फ यही इल्तज़ा है कि
उन्हें बलि का बकरा न बनाओ।

हमें क्या दिक्कत है कि
तुम मेरे काम आओ न आओ।

सिर्फ एक ही इल्तज़ा है
उन्हें भी तो निकम्मा न बनाओ।

हमें कोई दिक्कत नहीं
क्या सोचती,कहती यह दुनिया।

सिर्फ अब तुमसे इल्तज़ा है
दिल तोड़ मुझे"अकेला"न बनाओ

हमें कोई दिक्कत नहीं है
तुम रिश्ता निभाओ या न निभाओ।

सिर्फ यही इल्तज़ा है तुझसे
रिश्तों को ज़हर व कलंक से बचाओ।
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राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश

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