पापा के दिहल ह
पापा के दिहल--ह----त पहिरबे करब------
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एगो लईकी हंसत खिलखिलाती
आंख- मिचौली खेलत दिन रात।
पावत रही पापा के प्यार दुलार
पापा पर होखे प्यार के बरसात।
एक दिन आवत रहली स्कूल से
उनकर हाथ ऐंड़िये पर रहे जात।
रोज रोज देखत रहनी करामात
पूछि भईलीं बिटिया का है बात।
तबो उ बिन कुछ कहे रही जात
देखनी पीछे से पैर से लंगड़ात।
हम समझ लिहलीं जूती से बाटे
एह बिटिया के पैर रोज कटात।
दूसरा दिन हम रोकि के पूछिलीं
जूती से पैर जब होता लहूलुहान।
तब एके तुहंवु फेंक दिहतू बिटिया
फिरो सुघर नया जूती ना किनात ??
देखीं बात जूती के कटला के ना बा
कतनो कुछ होखी एहिके पहिनब ।
रवुआ समझ में इ बात कबो ना आई
हम एके काटेवाली जूती ना समझिले।
एह जूती में पापा के प्यार छुपल बाटे
एके पहिनब काहे कि पापा दिहले हवें।
पापा के दिहल कुछवू रही उनके आज्ञा
कटही जूती का जवन कहिहें उहे करब।
हमहीं त पापा के मान हईं सम्मान हईं
उनकर आशा, अरमान व विश्वास हईं।
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राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश
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