पत्नी की चिंता स्वाभाविक है
पत्नी की चिंता-
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पिया हो !!
घरवे रहिता।
चाहे केतनो
दुःखवा होई।
बाहरा जाके
का कर लेबा।
दुई पइसा के
फेरा में परिके।
हमार जिनिगी
गोबर कर देबा।
ढलि जाई जब
हमरो उमरिया।
ओकरा कइसे
फिरू ले अइबा।
पिया हो अब
तूं गंवुए रहा।
चाहे करिहा
खेती मजदूरी।
चाहे रेक्सा तूं
इहवें चलईहा।
चाहे ठेलागाड़ी
पुअरा बहरिहा।
चाहे कुछू करिहा
घरहीं रहिहा !!
केतनो दुखवा
हम सहि लेहब।
पिया हो हमके
संगवे रखिहा।
जिला जवार के
में रहिके तूहूं।
कवनो काम
चाहे करि लिहा।
पाकल अमवा
के मान रखिहा।
तोहरे खातिर
हम जनमल हईं।
चुटुकी भर सेनुरा
बनवले रहिहा।
ए बलम जी!!!
हमरे सोझा रहिहा।
चाहे कुछो करिहा
"अकेला"न छोड़िहा।
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रचना स्वरचित मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित
राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश
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