नये युग में भी कैसी सोच???

नये युग में ये कैसी सोच--नारी हेतु--
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सबकी सोच तो अलग अलग है
फिर भी सब एक ही तरह से हैं।

सबकी पसन्द भी सुन्दर ही है
वह चाहे उसके विपरीत हो ।

सब पढ़ी लिखी नारी चाहता है
भले ही वो मार अक्षर क्यूं न हो‌।

वह खुलकर बातचीत करती हो
वह एकदम खुले विचार की हो।

उसका रंग भी मिल्की व्हाईट हो
भले ही वो सब काले कौए से हों।

वस्त्र रैम्प पे कैटवॉक जैसा पहने
वह भले ही ट्रेन पर भी न चढ़ें हों।

वह फर्स्ट क्लास अंग्रेजी झारती हो
खाना भी होटल में जाकर खाती हो।

वह अपने घर की सेवा से दूर रहे
बातें करते खिलखिलाके हंसती हो।

केश घनेरे और घुटनों तक लहराये
बिंदास बातें करते हुई चैट करती हो।

नौकर चाकर घर पर काम करते हों
और वो"अकेला"मौज करती रहती हो।

लेकिन है कितने अफ़सोस की बात
ऐसा दूसरे के घर में देखना चाहते हैं।

अपनी बेटी की शादी कर सिखाते हैं
गांव ठीक नहीं शहर में जाके रहते हैं।

बहु यदि घर में सर्व गुण संपन्न आये
उसे पुरातनपंथी चोले में सब रखते हैं।

अपनी वीवी चाहे कितनी भी सुंदर हो
दूसरी दिखे तो पंख लगा के उड़ते हैं

प्रेम,व्यवहार और दहेज रहित विवाह
इन सबकी समाज में ये हामी भरते हैं।

लड़की की शादी में भिखारी होजाते हैं
लड़के में तो मुंह सुरसा सा कर देते हैं

क्या कहें हम इस आधुनिक दुनिया को
नारी सशक्तीकरण झूठमूठ ही कहते हैं।
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राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश

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