बदलता हुआ इंसान
हम तो एक खुली किताब हैं
आज भी कहानी नहीं बन सके
जैसा स्वभाव था हम वैसे ही रहे
दुख में भी तो दुखी नहीं रहे।
जो भी मेरे साथी थे अभी वही हैं
पद बदला गया पर हम वही रहे।
जिस पर हम आसरा लगाये थे
वह तो एक कहानी बन गये।
उनकी फितरत पर ही शक था
कहानी जैसे बदलते चले गए।
कभी हम गुमान करते थे उनपर
आज हम बदजुबान हो गये।
जब जरूरत पड़ी मुझे बुला लिया
अब नफ़रत के काबिल हो गए।
मैं तो जन्मजात ही समाजवादी हूं
मुझे तो कोई खरीद नहीं सकता।
तुम भी तो मेरेज्ञ जैसे ही रहे थे
अवसर मिला तो राष्ट्रवादी हो गए।
चलो अच्छा है फिर"अकेला"हुए
तुम्हारे लिए हम पराया हो गए।
जो कभी साथ नहीं छोड़ते थे
आज हमारे रास्ते भी बदल गये।
खैर हमें धन दौलत से मत तौलना
मुझे किताब हूं कहानी न समझना।
सनद रहे!इतिहास दुहराता है मित्र
कभी दूसरे का भी समय आता है।
जिसे तुम तिनका समझ दूर हुए हो
तिनके ने ही तो आशियां बनाया है।
ईश्वर सबको अवसर दे ही देता है
हमें भी यकीं है वक्त लौट आयेगा।
लेकिन चंद सिक्कों पे बदल गये हो
हम बदले भी तो सेवक बन जायेंगे।
तुम कहानी बनकर यूं बदलते रहना
खुली किताब हैं कुछ पन्ने बढ़ जायेंगे।
-----------
राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश
Comments
Post a Comment