बेवजह चाहिए मित्रता
मैं बेवजह बदनाम हूं
एक सच्चा इन्सान हूं।
उसने मेरा हाल पूछा
मैंने सोचा बेवजह है।
जब गौर फ़रमाया तो
कोई वजह प्रतीत हुई।
मैंने सोचा ऐसा क्या है
दोस्ती बेवजह होती है।
फिर इनकी वजह कैसे
वजह जानना चाहा तो।
मुझे बेवजह नहीं लगी
दोस्ती वजह से की है।
फिर यह दोस्ती नहीं है
जिसकी कोई वजह हो।
तो हम बेवजह ठीक हैं
वजह मेरी फितरत नहीं।
हजारों दोस्त नहीं चाहिए
बेवजह एक ही काफी है।
मैं सच के साथ जीता हूं
चाहे "अकेला"ही रह लूं ।
मुझे साथ रहना उसी के
जो मेरे जैसा बेवजह हो।
नहीं चाहिए मुझे शोहरत
बेवजह मित्र ही काफी हैं।
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राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं, बलिया,उत्तरप्रदेश,
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