कुछ पाने की ज़िद
तुझे मुझसे दूर जाने की ज़िद है
पर मुझे तो तेरे पाने की ज़िद है।
तेरी ज़िद के न टिक सकूंगा मैं
यह भी मुझे बखूबी मालूम है।
लेकिन इस बात का ग़म नहीं है
कि तुम,मुझे मिलोगे या कि नहीं।
मगर इतना तो मुझे तो यकीं है
डूबके भी मैं तेरे पास ही आऊंगा।
फासला मुझसे जितना बनाओगे
उतना ही नज़दीक तेरे मैं आऊंगा।
अगर इस जनम में नहीं मिलोगे
अगले जनम में साथ तेरा पाऊंगा।
तुम ये न समझना "अकेला"रहूंगा
हर पल ही तेरी याद में बिताऊंगा।
जमाना कहता है मुकद्दर का खेल है
मैं तुझे मुकद्दर से भी छीन लाऊंगा।
मेरी जिन्दगी का तो तूं ही मक़सद है
अपने मक़सद में हद तक जाऊंगा।
कोई लाख जतन करके भी देख ले
तेरी हर ज़िद को मैं भी अपनाऊंगा।
----------
राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं,बलिया, उत्तरप्रदेश
Comments
Post a Comment