एगो स्त्री के त्याग---
एगो स्त्री के त्याग---
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सब केहू जानेला
केतना स्त्री के मानेला।
जनमला से पहिलहीं
ओकरा के कईसे मारेला।
जनम केहूतरे ले लेली
जनमते भेदभाव होला।
बेटी बनिके बंधन में रहेली
बहिन,पतनी आदि आदि....
वियाह में तिलक दहेज़ उ
खूबे लेके ससुरा आवेली।
केतनो नीमन से रहलेनी
सास ननद के नाहीं भावेली।
एतने से ना मानेली उ सब
उनका मर्दों से लाई लगावेली।
जेकरे के खूबे मानत रहली
उहे दहेज बदे में जरावेली।
शिव जी एक बेर विष पियले
ई त रोजे ज़हर ढरकावेली।
इनका नियन त नईखे त्यागी
केहू के गलती के सजा पावेली।
सब केहू रोके दुख काटि लेला
ई त परगट रो भी ना पावेली।
कहेके त रानी बेटी कहावेली
बाकी जीवन भर दुखे पावेली।
जेकरा के पाल पोश बड़ करेली
ओही समाज के मने ना भावेली।
सबका सामने मुसुकी देखावस
"अकेला"रोईयो नाहीं पावेली।
पुरुष प्रधान समाज बाटे इहंवा
सबकर सेवा से मनसा पुरावेली।
सबकुछ चुपचाप सहि के रहेली
नाहीं त कवनो अपयश पावेली।
एक दिन बात के ज़हर ना सहे
ई बिना सुनले कहां सुति पावेली।
जेतने जेकर सेवा भाव करेलीन
ओतने भाव से ऊ इनके सतावेली।
हमरा त इहे समझ में आवेला कि
ई त्याग के मूरत एहिसे कहावेली।
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राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली,नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश
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