दीपोत्सव
कहीं दीप महोत्सव
जाता खूब मनावल।
लाखों दीप खूबे बा
हर जगह जलावल।
ओह गरीबवन के त
केहू ना पूछवईया बा।
जेकरा घर में चूल्हा
एक बेरा ना जरत बा।
ओकरा का बुझाई ई...
भूख से दिया बुताता।
दीप महोत्सव सही से
तबे मानल जाई जब।
हर घर में नाहीं केहुवो
भूख से रहे अकुलाईल।
प्रभुजी दीनानाथ बाड़न
दीनन में रहेले लुकाईल।
करोड़न रुपिया का होई
जब अदिमी बा भुखाईल।
दीपावली तबे ठीक कहाई
सभकर छुधा जब जुड़ाई।
कवनो तिहुवार नीक लागी
सभके चूल्हा जरावल जाई।
छोटे-बड़े के भेद मिटी तबे
सबके दिल में दीवाली होई।
बिना भेद के सब साथे रही
ना केहू भी"अकेला"पछताई।
ई नीमन कईसे हो सकेला...
कहीं जगमग जगमग होखे....
केहू कोना अंतरा में रहेला
दरिद्रनारायन सुसुके भुखाईल.....
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रचना स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
@ सर्वाधिकार सुरक्षित।
राम बहादुर राय"अकेला"
भरौली,नरहीं,बलिया,उत्तरप्रदेश
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