रिश्ते सिर्फ दो-चार शब्द नहीं हें

रिश्ते सिर्फ दो-चार शब्द नहीं
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रिश्ते सिर्फ़ दो-चार शब्द नहीं
अपनी संस्कृति एवं संस्कार हैं।

अपने वजूद के एहसास का है
अपनत्व के पूर्ण विश्वास का है।

अपनों से सुखमय आस का है
सुख-दुख में साथ चलने का है।

अपने पास भले ही दम नहीं है
मगर किसी से कम भी नहीं हैं।

चार शब्दों में ही परिलक्षित है
हम ही हैं यह तो कोरा वहम है।

मगर तेरा वहम एक अहम है
कि हम हैं हमसे तेरा वजूद है।
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रचना स्वरचित और मौलिक
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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