सब समझ रहे हैं कपट,प्रपंच,ताल

सब समझ रहे हैं कपट,प्रपंच,ताल
-----------------------------------------
कलंक का उन्माद अब नहीं सहेंगे
चाहे कुछ भी होगा अब नहीं सहेंगे
अरि मस्तक का अट्टहास नहीं सहेंगे
जियेंगे तो कई बार मृत्यु नहीं सहेंगे।

जो सुरसा जैसे मुंह बाये यहां खड़े हैं
ये मत समझ ! हम हाथ बांधे खड़े हैं
मैं अभी सो रहा हूं तब दुश्मन खड़े हैं
पीठ पीछे वार के तेरे धोखे खड़े हैं।

सब समझ रहे हैं कपट ,प्रपंच,ताल
देखते खड़ग झुक जाते हैं तेरे भाल
अपने अवगुण का नहीं तुझे मलाल
हाय अपने पापों का घड़ा तूं संभाल।
-------------------
रचना स्वरचित और कमेंट
@सर्वाधिकार सुरक्षित
@राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
@followers

Comments

Popular posts from this blog

देहियां हमार पियराइल, निरमोहिया ना आइल

माई भोजपुरी तोहके कतना बताईं

आजु नाहीं सदियन से, भारत देस महान