गाँव के थाती श्रृंखला नं-41
गाँव के थाती-श्रृंखला नं -41
------------------------------------
पहिले जब परम्परागत खेती खूब मजिगर होखत रहल तब लगभग-लगभग सभे गांव में रहत रहल आ संजोगन केहू पढ़वइया रहल..जेकरा घरे कवनो लड़िका पढ़े लागे ओकर नाम से केहू ना बोलावे,कहल जाव कि पढ़कुआ चाहे पढ़निहारवा से कवनो काम नइखे करावे के चाहे कहे के आ कई गांवन में हल्ला मचि जात रहल। ओहू में जिनकर लड़िका राम अगर बनारस पढ़े चलि जासु त जवन देखजरना होखसु जवन आजुओ त बटलहीं बाड़न लोग, कहसु कि राजा बनारस हवुए ओहिजा त बिगड़बे करिहन बबुआ अब गइल भंइस पानी में। खैर बिगरल-बनल त भगवान जी के हाथ में बाटे केहू के कहला से ना होखेला अगर अइसन बात रहित तब केहू के केहू रहहीं ना देइत।
ओहघरी सरकारी स्कूल रहल परवेट त केनियो रहबे ना कइल एहिसे सबकर लड़िका-लड़िकी एकही संगे पढ़त रहलन आ खूबे पढ़ाई होखे बिलायती दूधो पिये के मिलत रहे।सुबह के दस बजे से चार बजे तक स्कूल चलत रहल..साढ़े नौ बजे तक त कसहूं चोंहप जाये के रहे। स्कूल में पहुंचला के बाद अपनहीं साफ-सफाई करल जाव फिर सब बच्चा लोग एकही संगे पूरा स्कूल के कागज चाहे कवनो खराब सामान्य बिनि के एक जगह ले जाके फेंकत रहल आ गुरु जी पातर लपलपात कइन के छाकुन लेके एकदम डंटल रहत रहनी कि केहू कवनो कोताही मत करे। ओकरा बाद प्राथना होखे फिर व्यायाम तब अपना कक्षा में सब जाव।
अब त बइठे के पूरा इंतजाम बाटे लेकिन ओह समय में सब अपना घर से एक-एक गो बोरिया लेके आवत रहल बइठे खातिर...तब हाजिरी लियात रहल आ जे ना आइल रहल उनुकरा घरे चार-छव गो बरियार लड़िकन के गुरू जी भेजसु कि पकड़ि के ले आवजा...हर कक्षा में एगो मनीस्टर-उपमनीस्टर भी रहलन ..गुरू के आदेश पावते एकदम उड़न छू हो जात रहलन आ गैरहाजिर लोगन के दूनो हाथ आ गोड़ पकड़ि के टांगि लियावत रहल जबकि घरवो पिटासु आ गुरू जी त अइसन मारसु कि बोखार छोड़ा देत रहल आहि माई आहि बाबू चोकरे लागत रहे लोग।
कक्षा में एकदम घंटा से विषय के अनुसार पढ़ावल जात रहल जवना में आलेख-सुलेख के बड़ा ध्यान राखल जात रहल,ओकरा खातिर लकड़ी से बनल पटरी ,माटी के दवात आ ओहमें दूधिया घोरल रहत रहे, एगो धागा सुता पारे खातिर, भंगरइया के पतई से रगरि के दुवाइत से खूब पटरी गेल्हि के चमकावल जाव तब सुता पारि के नरकट के कलम से दुवाइत में बोरि-बोरि लिखल जात रहल....एकदम सीधा आ साफ सुघर अक्षर बइठे नाहीं त खूब कोड़ाई होखत रहल। गिनती-पहड़ा भी लिखवावल जाव एहघरी लेखा तामझाम रहबे ना कइल...मतलब एहसमय त लड़िका ना महटरे मोबाइल में पढ़ रहल बाड़न।
मुंहजबानी प्रश्न भी पूछाव गोलाई में बइठाई के अब जे ना बतावे तब दूसरा से पूछल जाव अगर उ बता देव तब..@ गुरू जी ओहि से कहसि कि लगा दिहे त दूई मुक्का@ अगर मुक्का मारे में लापरवाही होखे तब उनहीं पर घानी फिरत रहल। चार बजे सबकर एकही संगे छुट्टी होखत रहल...तब भागे अइसन सब जइसे हरवाहीं से बरध छुटल होखसन...बीच-बीच में जमि के लाता-लूती भी होखे आ कबो-कबो त पटरी चलउल हो जात रहल जवना में कपार भी फूटि जात रहल कभी-कभार लेकिन घर के लोगन केहें ओरहन आवे..सम्बन्ध खराब ना होखे...गजब बरदाश्त करे के क्षमता सबकरा में रहल।
कुछ लड़िका पढ़े-लिखे में बहुत नीक होखसु आ एकदम समय से पढ़े आवसु...गुरू जी उनकरा अइसन विद्यार्थियन के बहुत मानबो करसु...कहीं जायेके होखे तब ओहि बचवन के सरेखि के चल जाव लोग लेकिन सब लड़िका एकनी से भी ओतने डेरात रहलन जेतना कि गुरू जी लोगन से। आ जे भी बाति ना माने तब दे दनादन दे दनादन पिटाय तब छंवुकल छूटि जाव।
कवनो-कवनो जगह पर अइसनो गुरू जी होखसु कि लड़िकन से आपन गोड़ दबवावत रहे, अंगुरी पड़कावल, कपार दबावल करत रहलन। कुछ लड़िकन से होरहा मांगल जाव त लड़िकवन भी कम चालू ना रहलन...गुरू जी के खेत-खरिहान से ले आवत रहलन काहें से कि उ देखे त जात नाहीं रहलन...बाद में जानियो के का करिहन...;अब पछताये होत का जब चिड़िया चुगि लिहलस खेत;...
कुछ अइसन भी मनढ़ीठ लड़िका रहलन जवन पढ़हीं ना आवत रहलन जबकि घर से त झोरा पटरी लेके स्कूले खातिर निकलत रहन लेकिन उनकर एगो अलगे गुट रहल जवन घूमहीं वाला रहे...त झोरा-झक्कड़ केनियो रखिके खेत-खरिहान के ओरि निकल जात रहलन जहंवा खूब जमि के ओल्हा-पाति खेलल जात रहल...ओल्हा-पाती के मतलब ई रहल कि आम के बगइचा ओहघरी खूब घनघोर झमड़ल रहते रहे आ पिपर -पाकड़...ना ना परकार के फेंड़-रूख रहल तब फेंड़ पर ही सब रहे जवन डाढ़ि लपि के जमीन के निगिचा आ जात रहे ओकरा पर बइठला पर ...सब ओइसने पर बइठल रहे त कबो डाढ़ि पर त कबो नीचे कूदि के भगन्ता होखे .....अइसहीं खूब खेला होखे बहुत मजा आवत रहल....मजे के बात त ई बाटे कि हमहूं ओहि खेलवइया में के एगो रहल बानी।
ओकरे बाद एगो आइस-पाइस होखे जवन अब सपना जइसन बुझाला...अब कहंवा खेलल जाता आ ओकर कई गो कारन भी बाटे ...जइसे में सभकर खेती साथे होखे आ एहघरी वाला तकनीक त रहे नाहीं....टिबुल, टेकटर, चम्पा कल वगैरह-वगैरह तब बाजड़ा-अगहनिया...अरहर के खूब खेती होखे..आ घरे-घरे गाइ-गोरू रहल। खेत में से लेहना कपारे पर धई के सब ले आवत रहे...जेकर ढ़ेर चलती रहल ओकरा बैल-गाड़ी से आवत रहल लेकिन सबकर ई काम रहल...जब लेहना सूखि जाव चाहे बालि टुंगि के खेते में पल्हारि डला जाव फिर बोझा बान्हि के खेत के लगवें बगइचा-वोगइचा में फेंड़ के चोगोठा गल्ला कर दिहल जाव नाहीं त गांव के गोंयड़ा खरिहान में भी राखल जात रहल तब सब लड़िकन मिलि के छुपम-छुपाई के खेल आइस-पाइस होखे जवना में लड़िका-लड़िकी सब केहू खेले....ओकरा में होखे कि एक लड़िका कुछ दूर जाके तब तक ईमानदारी से आंख मूदले रहे जब तक सब लुका ना जाव फिर बोलल जाव कि आवऽ..तब उ सबकरा के खोजसु आ सब केहू ओहि बोझा के भीतर ढ़ूकि के बोझा के आड़ में लुका जाव....जे पहिले लउकि जाव उ अगिला आंख मुदाये वाला होखे माने कि उ अब सबके खोजे...बहुत मजा आवत रहल। गुल्ली-डंडा, लट्टू ,चोर-सिपाही त होखबे करे लड़िकिन सब ति.. ति.. ति... चूं.... एक टांगि पर दवुरे सन, रस्सी फानसु, कबड्डी, खो-खो खूबे न होखे।
हमरा गांवे त गंगा मइया बाड़ी आ खूब सुघर उनकर किनारा बाटे एकदम बराबर तब हमनी के सबेरे जाईं जा आ खूब पंवरत रहनीं जा आ तब तक रहीं जा जब तक केहू बड़ आके डांटे नाहीं....पनियो में छुवन्ता होखत रहल....दिन-दिन भर खेलते रहि जात रहनी जा। पंवरे के भी हांका-बाजी खूबे न लागत रहे, रेस होखे, निर्णायक होखसु....हमहूं बहुत बड़े तैराक रहनीं आ आजूवो बानी काहें से कि एकरा में बहुत मेहनत ना लागेला जे सीख गइल बाटे। हमनी के गुट के लगभग सभे एकदम चौचक रहे पंवरे में हमहूं कई बेरी गंगा जी के पार करि दिहले बानी लेकिन पुरनिया लोगन के कहनाम रहल कि गंगा माई के लांघल ना जाला एहिसे किनारे पर से बिना पारे कइले वापस आ जात रहीं जा। कहीं-कहीं रेता भी परि जात रहे तब कुल्हि जाना पंवरि के ओहि बालू के रेता पर खूब खेलत रहनीं सब। ओहि में केहू मछरियो मारे लागे जबकि खाये वाला केहू ना रहल...कबो-कबो त सूंस हमनी के लगवे पलटी मारि देत रहलन तब डेरा के बड़ा तेजी से तैर के भागि जायेके परे...तब पानी में भरि जोर हाथ-गोड़ आ मुड़ी तीनी दनादन चले लागे। बाढ़ि आवत रहल तब दिक्कत होखे एकर कारन ई रहल कि हमरा केहें गंगा जी पर पुल बनल रहल हाले में एहि से बड़ा चकोह मारे पानी...एतना तेज बहाव रहत रहे कि पंवरला मान के ना रहे...बहा जात केहू भी।हालांकि आज के समय में एगो आउर पुल बनि के चालू हो गइल बा...अब तीसरा पुल हमरा गाँव से बक्सर के बीच में तीन लेन के बने के बतावल जा रहल बाटे।
जब केहू में झगरा वगैरह होखत रहल तब ओहिघरी फरिया जाव आज लेखा केहू के पेट ना बथत रहे...फिर काम परे त बोलचाल तुरंतले होखे लागे...अरे का रे मरदे आव जवन भइल तवन भइल छोड़ऽ पहिले के बात। जवन बात होखे एकदम दम आइना लेखा झलकत रहल आ केहू हुंसियारी ना लगावे के कोशिश करत रहे एहिसे सबकरा में प्रेम-भाव बनल रहे...उ जमाना रहल कि सब केहू खाली नेह-छोह, प्यार-दुलार खातिर जियत रहल...लड़िकन में खूब कपर फोरवुवल भी हो जात रहल तबो आपुस में केहू लड़त-झगड़त ना रहल।
आज के समय में सब हुंसियार हो गइल बा..सबकरा लगे लगभग सब कुछ कमोबेश बाटे लेकिन उपरे-उपर हाथी के दांत लेखा देखावटी ही कहल जाई....सब केहू सोझा परला पर अइसन अगराइल बतियावत बा जइसे कि बहुत मानत होखे . आ जेंव ओहिजुग से हटलऽ...उ शुरुआत करि देबेलन....अरे फलनवा बहुत उ हवुए...ई हवुए माने कुछवू छोड़िहन नाहीं।
-------------------
आलेख स्वरचित अउरी मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
@followers
Comments
Post a Comment