का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल
का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल
-------------------------------------------------
का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल
बनला में शहर, गंवुओ बेकार हो गइल।
झुरूकत नइखे इहंवो नेहि के बयरिया
गंवुओ धुंआइल, रहि रहि घेरे बदरिया।
मिलत रहे जहां प्यार , तकरार हो गइल
का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल।
तनी-तनी बात में महाभारत होई जाता
कइके रगड़ा अब झगड़ा खोजल जाता।
देखा - देखी में गंवुओ बाजार हो गइल
का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल।
गंवुओ के शहर अब बनावल जात बा
गांव के पहचान अब मेटावल जात बा।
इहंवो शहरन के सब विचार आ गइल
का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल।
सवारथ में चले लागल राहि से कुरहिया
नइखे चिन्हात बाबू हवुवन कि भइया।
जाने कवन चनरगत के शिकर हो गइल
का कहीं ए सखी कइसन गांव हो गइल।
---------------------
रचना स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
@followers
Comments
Post a Comment