उनके लिए शिकार हैं हम
उनके लिए शिकार हैं हम!
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उनके लिए तो खार हैं हम
सारे रिश्ते हम ही निभायेंगे!
क्यों नहीं बड़े साहब जो हैं
हम उनके गुनाहगार जो हैं!
एकतरफा प्रेम हम ही करें
उनके तो तलबगार हैं हम!
वो नजर अंदाज करते रहें
उनके लिए शिकार हैं हम!
जुबां पर शहद लिए घूमते
हम बार-बार चले आते हैं!
वे बार-बार खंजर चुभाते
समझें कि बेजुबान हैं हम!
ऐसी सोच जेहन में रखते
प्यार में बिकना जानते हैं!
मैं निस्पृह होके साथ देता
तो भी शिकार होते हैं हम!
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रचना स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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