गाँव के थाती-श्रृंखला-40

गाँव के थाती-श्रृंखला-40
---------------------------------
चइती के खेती के समय निगिचाइल रहल तब सभे अपना-अपना काम-धाम में अंझुराइले रहल काहें से कल-पुरजा वाला युग-जमाना ओह समय ना रहल।
सबसे बड़ बात रहे कि पइसा कमाये के कवनो साधन ना रहे आ कुछ लोग के पास ही आपार धन-सम्पदा, खैत-बारी रहल...त अब बाकी लोक करसु कवन काम, आज के अइसन त रहबे ना कइल कि कहीं ठेला-ठूली चाहे दर-दोकान लगा के फुटपाथो पर कमा लिहित लोग। गाड़ी-छेकड़ा भी ना रहल आज के समय लेखा कि कहीं माल उतरत होखे कि मोटिहाई कइके चाहे ड्राइवर, कंडक्टर, खलासी, मिस्त्रियांव से दू पइसा भेंटाइत.....फिर विकल्प सीमित रहल बहुत कम लोग पढ़बो करे...खाहीं के कवनो नीमन व्यवस्था ना रहल ढ़ंग के तब उ पढ़ाई- लिखाई का करितन।
अब ओह समय होखत इहे रहल कि चरवाही, हरवाही, मेहनत, मजूरी के बाद लगभग-लगभग कवनो दूसर उपाय ना रहल....जमाना उ बहुत सस्ता रहल लेकिन पइसा केहू के लगवा रहबे ना कइल...आज लाख मंहगाई बाटे लेकिन सबका लगे आधुनिक व्यव्स्था बटलहीं बाटे कुछ अपवाद हो सकेला ओकरा के छोड़ि दिहल जाव त। सबकर संयुक्त परिवार रहल आ खेती कमाये खाये खातिर मुख्य काम रहल जवना में सब केहू अंझुराइल रहत रहल त जेकरा लगे कुछवू ना रहल उ चरवाही के काम करे कुछ लोग हरवाह रहल...चरवाह से मतलब ई बा कि जमींदारन केहें...जेकरा भी ढ़ेर जमीन रहल ...जमीन से ही सब काम उनकर होखे उहे जमींदार रहल, कुछ लोग जेकरा कवनो आहि-अलम ना रहल उ चरवाही करे मतलब एक बरिस के बात होखे कि तूं हमरा केहें काम करऽ जवन भी दुवार पर खेत में काम रही करिहऽ ओकरा बदले में कुछ खेत तोहरा के दियाई आ एकरा के बेवावल-जोतवावल मालिक के काम रहल कुछ पइसा भी एडवांस में दियाव...परिवार के भी व्यवस्था कइल जात रहल जेकरा से काम करे वाला के कवनो चिन्ता-फिकिर ना रहे...इहां तक कि ओकरा के अपने जमीन में बसावल भी गइल रहल आ केहु ओकरा के चाहे ओकरे घर-परिवार के लोगन के कुछ भला-बुरा कहि दिहलन कि तुरन्त मालिक लाठी-लठवुवल कर देत रहलन कि जह ही हमरा आदमी के तोहर बेंवत कि बोल देबऽ...तोहरा एतना मजाल...खूंटिया खाप हो जाई हो ...खबरदार!!! ई हमार सवांग हवुए एकरा ओर तकिहऽ जनि...हं कवनो गलती करत होखे त हमरा से कहऽ..हम न ओकरा के समझा-बुझा के मनायेब लेकिन तूं ना बोल सकेलऽ। ओहितरे हरवाह रहसु जा....जइसे कि केहू के एगो हर चलत रहल तब दूगो बरध राखे...अब इहे हिसाब से एगो हर मतलब दूगो बरध रहे आ कबो अइसन भी रहत रहल कि दूगो किसान एक-एक गो बरध राखल जाव फिर दूनों मिलाके एगो हर चले जवना के संगहूता चाहे संझइती कहल जाव...बड़ जमींदार रहल लोग उनकर बीसो बरध रहे तब दस गो हर चलत रहल। जेतना हर चले ओतने हरवाह रहलन, एगो हर पर एगो हरविन्दर हर चलावे...जब खेत बोवल जाव तब ओकरा के हर ना टाड़ि कहल जाव जवन लमहर हरीश संगे जुवाठ में बरधन के कान्ही पर रसरी में फंसा के सबसे पाछे टाड़ि में बिया डालत चलत रहलन हरवाह भइया खेत के चीरत...बहुत धियान दिहल जात रहल खेतन के ओदी पर तरसिवाय, खर-सेवर मतलब जइसन खेत मांगत रहे ओही हिसाब से टाड़ि के गहिराई होखे...एकरा में हरवाह के जानकारी के समझ के बात होखे कुछ हरवाह बहुत उच्च कोटि के जानकार होखसु मने हर सइला के माहिर उनकर बड़ा महत्व रहल मलिकार अपनहीं खाना-पानी उनकर लेके खेते समय से पहिलहीं चोंहपल रहसु नाहीं त तनिको देरी होखला पर हरवाह पैना चलाके मारियो देत रहलें..कहाव कि सांझ के हरवाहीं से खुलल बरध आ हरवाह के सोझा परलऽ त उलाटिये दिही एहिसे रास्ता खाली छोड़ि के तुरंत हटऽ नाहीं घाही होखे के बाटे तब सोझा परऽ एहिसे सब केहू हरवाहीं से छूटे के समय राहि खाली कर देत रहल।
जब मोटान्जा के कटनी हो जात रहल तब खेतन में पलिहर अनाज के बोझा बान्हि के गल्ला कइला के बाद खरिहान छिल-छाल के बोझा-बोझा माथे पर चाहे मरदाना लोग कांवरो पर ढ़ोवत खरिहान में लावत रहल, कांवर के फायदा रहल कि एके बेरी दूगो चले भर के बोझा आवत रहल त जल्दी काम सेयार होखत रहल आ समय भी कम लागत रहल ।गरीबी के पैमाना ई रहल कि गरीबन के जिये के आधार बहुत कमे रहल जिये खाये के त खरिहान में बिछौना,अंटिया,बन खातिर घर के अण्डे-बच्चे सब खरिहान में आवत रहे कि हमनी के आपन मेहमतानी मिली त ओही के कूट-पीटि के कुछ खाये खातिर व्यवस्था कइल जाई....ओहू में कवनो अइसनो निष्ठुर, निर्दयी मालिक रहसु कि बनिहारनो के हक-हिस्सा लूटि लेबे तब ई जमाना त रहल ना कि केहू कुछवू करी आ ओहनी के पढ़ल-लिखल, जागरूक रहबे ना कइलन....तब चुपचाप रोवां गिरवले आपन मन के डहकावत चलि जाव...लेकिन भगवान लूटे वाला लोग कवनो ना कवनो सजा भी देइये देत रहलन अब भले ना बुझात होखे चाहे जानि-बूझि के ना जनावत होखसु।
अब खरिहान में दंवरी के दौर चले तब पूरा गल्ला कइल के बिछावल जाव जवना कहाव कि पैर हवुए फिर कमसे कम तीन-चारि गो बरधन के एकही में नाथि दिहल जाव...ओह लोग के नाक में छेदि के नथिया पहिरावल रहत रहल...तब बरधन के खिंचावे के बेंवते ना रहि जाला।दंवरी में सबसे में एगो मेहिंया चले वाला बरध रहे जवन एक दरे तनी-तनी घूमे आ जेतने बाहर के ओर जायेके रहे ओतने ढ़ेर घूमे के परत रहल...कुल्ह मिलाके गोल-गोल घूमत रहन बरधन दिन भर..अइसन रहल कि केहूं बरधन के पोंछि धई के दंवरी हांकि लेत रहल...एह बात पर बहुत धियान दियात रहल कि गोबर जब बढ़ावस तब ओकरा के खंचोली में उपरे-उपर रोकि के बाहर फेंकि दियाव त साफ-सफाई रहल करे। कुछ किसान बरधन के मुंह में जाबि लगा देत रहलन कि अनाज खाइये ना पावसु लेकिन ई पाप के भागीदार बने वाला काम कहल जात रहल आ अपनहूं बुझाता कि ठीक नइखे...लगभग सब किसानन केहें बरधन के मुंह के जाबल ना जात रहल चाहे केतनो अनाज खाव आखिर महादेव जी लोग हवुए। ।गोबर में कबो-कबो बूझाव कि पूरा अनाजे हवुए त कुछ लोग अइसनो रहलन कि गोबर के पानी में डालि के छानि लिहल जाव अनाज फिर नीमन से धोई के ओहिके उपयोग कवनो काम में करत रहलन लोग आखिर गरीबी का ना करावे..हालांकि बहुत कमे अइसन होखत रहल लेकिन रहल।

जेकर जवन भी काम रहल करत रहल ओकरा में अफनाइल रहत रहल बाकी लगभग सब लोग त घरहीं रहल करे, बाहर जाये के चलन नाव-मात्र के रहल। केहू-केहू बहरी जात रहे उहो बंगाल में ही जाइल जाव...जेकरा घर के सवांग बंगाल जाये लागे तब उनकरा घर के मेहरारून के दिमाग में ऐगो बात त बइठिये जाव कि अब का जाने लवटिहन कि ना...कहल जाव कि ओहिजुग के पानी बहुत तेज होखेला फिर कवनो जरूर टोना-टोटका से ओहिजे बान्हा जइहन...लेकिन इहो बात रहल कि बहुत हद तक ई जेकरा घरे तनियो मनी बेंवत रहे उ बहरी कमाये खातिर त नाहिंये जात रहल आ कुछ लोग घर से खिसियाय के भागत रहलन...अइसन अपवादस्वरूप ही होखे...नोकरी कइल नीमन ना मानल जात रहल।
बहुत लोग गइल भी रहल कमाये खातिर...घरे कुछ रहबे ना कइल कवनो आहि-अलम तब मजबूरी रहल कि कवनो काम मिले त करसु...त एहघरी अइसन बहुत रोजगार त रहल ना बड़-बड़ सेठ-महाजन, मारवाड़ी, जमींदार केहें नोकरी-चाकरी करे में लागि जात रहलन लोग।पढ़ल-लिखल त केहू नाहिये रहल लोग कुछ अपवाद के छोड़ि के तब अइसहीं सब केहू के भारी काम करे खेती करावे, मजदूरी करे, ठेला खींचे, रेवड़ी चलावे, रेलवे स्टेशन पर कुछ बेचे माने एहितरे के काम मिले भी...वजह रहल कि अगर पढ़ल-लिखल रहितन त नीमन घर के रहितन तब उनका जाहीं के परित...बहुत गरीबी रहल...तब अनपढ लोग जजी त करी ना।
आ हमनी के सुनत रहनीं कि गिरमिटिया मजदूरन के बारे में...हमहूं जब सिविल सेवा खातिर पढ़त रहनी हमार विषय इतिहास रहल जवना में पढ़नी कि फिरंगियन के उपनिवेश देश रहल जवना में एगो हमनी के भारत भी रहल...अंग्रेज अपना फायदा खातिर आवनो भी नीच काम करे-करवावे पर लागि जात रहले सन आ एहनी के मुख्य काम जवना देश के गुलाम बनवले रहलन ओकरा के लूटल रहल उहां के जनता-जनार्दन से कवनो मतलब ना रहल।जब अंग्रेज भारत के अपना आधिपत्य में ले लिहलेसन तब ओकनी के अब फायदा लउके लागल तब उ आपन उपनिवेश वाला जगह पर व्यापार आ लूटपाट त करते रहलन लेकिन ओहू से पेट ना भरल तब उ गन्ना, नील के खेती करावे लगलन बलाते फिर दूसरा देशन खातिर मजदूर ना मिलत रहसन तब हमनी के भारत के गांवन में बिना जनवले रात-बिरात छापा मारिके आदमी के पकड़ल जाव जइसे कि जाल में मछरी।अब जे धरा गइल ओकर कवनो ठर-ठेकाना ना रहे कि कहंवा जाई आ जिही की मरी...एगो कोरा कागज पर अंगूठा के टीप जबरदस्ती लगवा के बड़े-बड़े घटहा (नाव) में सिकड़ में बान्हिके बिना मोह-छोह के फेंकि दिहल जाव फिर पानी वाली जहाज से बाहर भेजि दियाव त केहू मारीशस, फिजी, ट्रिनिनाड.....ना जाने कहां पहुंच गइलन।
बहुत गरीबी भी रहल त कुछ लोग त मजबूर रहलन कि बाहर जाहीं के परे त सबसे नीमन पूरब के देश कहाव बंगाल...ओह समय बंगाल के सीमा बहुत लमहर-चाकर रहल एहघरी लेखा बंटल ना रहल। बड़े-बड़े घटहा नाव लागल रहसऽ आ गांवन में डुगडुगी पिटाव कि जेकरा चले के बाटे बहरी उ चले फलाना दिने सभ केहू जाई..लोग गइलन आ जाके आपन मेहनत-मजूरी करे लगलन फिर केहू लवटल केहू के पते ना चलल केहू बहुत आगहूं चलि गइल।
एक गांव के अदिमी के दूसरा गांव के अदिमी से मेल-मिलाप तबे होखत रहल जब कवनो परोज, नेवता-हंकारी रहो चाहे कवनो मेला में भेंट-मुलाकात होखत रहल एकर कारन रहल कि जाये-आवे के साधन नावें-मात्र के रहल आ हई मोबाइल-ओबाइल के नावें-ठेकान ना रहे...अगर केहू के कहीं जाहूं के रहत रहल त साईकिल सबसे नीमन एकमात्र भाई-बंधु रहल, कुछ लोग के साधन घोड़ा रहल, एक्का,सबसे बड़हन साधन बैलगाड़ी रहल।
बैलगाड़ी खातिर कम से कम एक जोड़ी मतलब कि दूगो पाठा बरध के काम रहेला, गाड़ी जवन बरियार लकड़ी आ बांस के कोरो से बनावल रहत रहे, दूगो लकड़ी के पहिया जवन बबुल के लकड़ी से बनावल जाव ओकरा उपर लोहा के हालि गरमा के बढ़ई से चढ़वावल जाव फिर पानी डालि के ठंढ़ा कइल जाव तब गाड़ी तइयार होत रहल....हालांकि आजुओ गाड़ी कहीं-कहीं देखल जा सकेला
जवन आज के लोग आ सगरो संसार कहता कि प्रदूषण कम कइल जाव नाहीं त समूल नाश हो जाई लेकिन रवुंआ सब सोचीं हमनी के विज्ञान आज बहुत आगे मानल जाता....का ई सही बात बा हमनी के बहुत विकास कर लिहले बानी...कि पहिलवे के लोगवा ढ़ेर आगे रहलन खैर ए लफड़ा में के परे जाई बाकी ई समझल जाव कि बैलगाड़ी, एक्का, रेक्सा, साईकिल ई सब प्रदूषण से परे रहल...जवन इको सिस्टम के बात हमनी के कर रहल बानी उ बहुत पहिलहीं हमनी के भारत में चलन में रहल बा ई सब साधन से कबो प्रदूषण फइलबे ना करेला आ खरचा भी ना होखे लोगन के रोजगार भी मिलत रहल..लोग नोकरी पसने ना करत रहलन...एगो कहाउत कहल जाला......

उत्तम खेती, मध्यम बान
निकृष्ट चाकरी,भीख निदान।

कहला के मतलब बा कि सबसे नीमन खेती मानल जात रहल तब व्यापार, तब तिसरका स्थान पर नोकरी रहल आ भीख मांगला से निकृष्ट त कुछवू ना हो सकेला। लेकिन अब परिभाषा आ परिस्थित बदलि गइल बा।

एगो समय रहल कि सड़क एक लेन के रहल ओहपर कबो-कबो गाड़ी कवनो चलत रहल...चलन में बैलगाड़ी ही रहल, अगर केहू बेमार-हेमार परत रहे तब सब टोला-परोसा के लोग घर से हाथे-पाथे लादि के खटिया जेकरा भा बंसहट भी कहल जाला, पर उठा के बैलगाड़ी पर कुछ बिछाई के सुतावल जाव फिर बरधन के बैलगाड़ी में गाड़ीवान जे भी रहे नाधि के अपने आगे पैना-चाभुक लेके बइठि के हांके लागे....पैना एगो बांस के दूई हाथ के डंडा लेखा होखे आ चाभुक ओहि पैनवा के मुंह पर चमड़ा के कई गो पातर-पातर लरछी बान्हल रहे...जब बरधन बादमासी करे लोग तबे एक चाभुक सट से मारि दिहल जाव फिर त एकदम से खरकन्ना हो जात रहलन जा।माल वगैरह लदनी करि के गाड़ीवान गाड़ी हांकसु रात-बिरात भी तब लिट्टी-चोखा एकदम चटकदार बनवाके चलसु जा...जब सुनसान रास्ता मिले तब एगो कान में अंगुरी डालि के खूबे लोरकी गावत, पिंहिंकत चलत रहल....कई गो बैलगाड़ी संगहीं चले कि कवनो दिक्कत ना होखी। जब भूख-पियास लागे तब खायेके त लेलहीं रहसु लोग,पानी खातिर जहंवा इनार लउकि जाव ओहिजे गाड़ी रोकि के कहीं एकगरी उतरि के जासु...इनरा पर उहंवा के आदमी नरियर से डोरि आ एगो बाल्टी रखले रहलन....ठंढ़ा पानी निकालि के भर सीकम पियला के फिर आपन गाड़ी पर बइठि के बरधन के हांकत चलि देत रहलन।
              ------------------------
आलेख स्वरचित,मौलिक 
@सर्वाधिकार सुरक्षित 
राम बहादुर राय 
भरौली,बलिया श,उत्तर प्रदेश 
@followers

Comments

Popular posts from this blog

देहियां हमार पियराइल, निरमोहिया ना आइल

माई भोजपुरी तोहके कतना बताईं

आजु नाहीं सदियन से, भारत देस महान