कुहूं-कुहूं बोले कोइलर कि नीक दिन आइल
कुहूं-कुहूं बोले कोइलिया कि नीक दिन आइल
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कुहूं-कुहूं बोले कोइलिया कि नीक दिन आइल
उड़ि-उड़ि बइठेली कुछ कहेली हमरा बुझाइल।
मन रहल उजास हियरा लागत रहे बहुत भारी
मन मसोसत रहल कि चोट कहंवा बा लागल।
बात जवन कचोटत रहे बाहर निकली आइल
कोइलि के बोलिया सुनला पर मन अगराइल।
लहकत जिनिगी भइल रहल, कुरूख मिताई
तीत-मीठ होखेलसन हित-मित केतना बताई।
कुहूं-कुहूं बोले कोइलिया कि मनवा फुलाइल
मन भइल गुलाल सूखल मन फेरू अगराइल।
रूप-रंग लेके उड़ि गइल रहे जवन चुहेड़पन
तीत लागत रहे मीठ बोलियो के अल्हड़पन।
धनि बाड़ू कोइल तोहरे से नीक दिन आइल
मन के पंछी तोहरे सुमगुम पाके चहचहाइल।
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रचना स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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