मन का सन्नाटा अविरल
मन का सन्नाटा अविरल!!!
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मन का सन्नाटा अविरल
देख रहा नित नए साल!
रोजाना नई उठती तरंगें
तब भी मन है अविकल!
आशीष कपोल-कल्पित
हर्षित मन नहीं हलचल!
रहता मन से अति शुभ
हृदय नहीं भाव-विह्वल!
छद्म धूप की पीली छांव
कलुषित है मन निर्मल!
दाड़िम फल है प्रतिपल
संतृप्त नहीं होता अनल!
आकाश से बड़े दिखते
प्रतिमान जैसे क्षुद्र तल!
आरूढ़ है मन में सत्ता
हृदय अकुलित निर्बल!
देखे दृग सजाकर जिसे
उर खंजर से काटे भाल!
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रचना स्वरचित,मौलिक
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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