सूखल नदी-नाला फिर से बढ़ियाइल
सूखल नदी-नाला फिर से बढ़ियाइल!!
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अमवा मोजराइल, महुओ कोचाइल
कोइलर के कूंक से फागुन बुझाइल!
बुझातबा कि आइल उखमजल फ़ाग
सरसो फूलल भंवरा छेड़े लागल राग!
धरती माई बाड़ी धानी रंग में रंगाइल
सब केहूवे खुशी से बाटे लहलहाइल!
सन-सन चले लागल पूरबी बयरिया
केसे कहीं गतरे-गतर बेधता देहिया!
सभकर मनवा बिहंसल ,चहचहाइल
चेहरा गुलाब नियन खिलखिलाइल!
लाल-पियर होके बहकल मोर जियरा
नाचे मन-मयूरा सावन भइल हियरा!
हरियर कचनार देखिके मन गदराइल
सूखल नदी-नाला फिर से बढ़ियाइल!
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रचना स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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