गंवुवा के जिनगी बचाव मोरे भइया
गंवुवा क जिनगी बचाव मोरे भइया।।
------------------------------------------------
चलत बा जिनगिया उधार मोरे भइया
बहुत याद आवेला पहिलका समइया।
खेत-खरिहानी सब संगवे जात रहल
बोवे के बेरि आर-कोन कोड़ात रहल।
दुवरा पर कुदे बछवा देखते मइया
मेंक-मेंक करे, धवुरे मारत कलइया।
अन्न-धन से भरले रहे घरवा-दुवरवा
टन-मन रहते रहले भइया किसनवा।
होत भोरहरिया गीत सुनावे चिरइया
गीता-मानस होखे दुवार अगनइया।
लाल-ललछहूं लाठी कन्हिया पर धरे
कामदेव भी इरखा में देखि के जरे।
हरियर कचनार रहल खेतवा सरेहिया
रेंड़त बालिया झांके जइसे दुल्हिनिया।
लह-लह लहरे देखत खेतन में खुसिया
बिहंसे किसान देखे सोना क बालिया।
पिपर के गांछि केहें मिले ए.सी.क हवा
छलके गतरे-गतर नेह छोह के दवा।
दूध-मलाई चांपत रहे कुकुर बिलइया
अब गइये-भंइ सपना भइल ए भइया।
त कड़े-कड़े कवुआ नबाव क बेटवुवा
लुटि लिहलस सहरिये हमनी के गंवुवा।
नाहीं रहल गंवुवा ना त बनल सहरिया
छूटत नइखे हमसे गांव के मयरिया।
चलत बा जिनगिया उधार मोरे भइया
गंवुवा क जिनगी बचाव मोरे भइया।
-------------------
राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
#highlights भोजपुरी
Comments
Post a Comment