प्यार की शक्ति
दिलों में रहता था सबके प्यार
एक दूसरे से होता था तकरार।
जो भी होता हमारे आसपास
करते खूब हास और परिहास।
कभी दोहा कभी चौपाई लिखूं
अब तो सिर्फ़ ग़ज़ल लिखता हूं।
तोपों और बमों से सलामी देते
फिर हमारे पास भी फूल नहीं है।
हम तो चाहने वाले को चाहते हैं
मगर यह चाहत आखिरी नहीं है।
जिसे चाहता था गीत ग़ज़ल बन
वह मेरी आखिरी ग़ज़ल भी नहीं।
याद रखना तूने पैसे से सब तोला
हम पैसों पर नहीं हैं बिकने वाले।
इस दुनिया में सब कुछ नश्वर है
क्यों सोच रहा है कि तू अमर है।
मैं"अकेला'प्यार का एक दरिया हूं
आने के लिए सब खोलके रखा हूं।
मुझे समझना होगा तुमको ठीक से
मैं प्यार के लिए प्यार से कुर्बान हूं।
बहकाने के लिए तमाम प्रलोभन हैं
मेरे जैसे सच्चे कम अच्छे लगते हैं ।
जिंदगी में दर्द तो कोई दे सकता है
मैं दर्द लेकर भी खुश रहा करता हूं।
प्यार मेरा कभी तुमसे कम न हो जाए
इसी डर से ज्यादे"अकेला"रह लेता हूं।
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रचना स्वरचित एवं मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।
राम बहादुर राय "अकेला"
भरौली, नरहीं, बलिया, उत्तरप्रदेश
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