आइल फागुनी बहार लूटऽ लूटऽ लहार
चार दिन के जिनिगी जनि करऽ बिगार
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आइल फागुनी बहार लूटऽ लूटऽ लहार
कबो ठंढ़ा,कबो गरम,कबो परेला फुहार।
तन-मन में होखी जेवन तोहार कुविचार
होली खेलि खतम करिहऽ आपन गुबार।
बरिस-बरिस पर आवेला रंग के तिहुवार
देश-विदेश से आवेले लोग घरवा-दुवार।
सबसे पहिले करिहऽ भउजी के तइयार
फिर छोटका बचवन से रखिहऽ दुलार।
केतनो कइले होखबऽ केहू से तूं बिगार
गोड़ छू के रंग अबीर लगइहऽ एक बार।
पहिले खिसियइहन फिर करिहन दुलार
उहो सोचते होइहन कवन दुश्मनी हमार।
सबके मनाइके एकही बनइहऽ परिवार
रंग बरिसइहऽ,बंटिहऽ रंग भरि के प्यार।
आइल फागुनी बहार लूटऽ लूटऽ लहार
दुख-दलिदर के जरा दिहऽ अबकी बार।
चार दिन के जिनिगी,जनि करऽ बिगार
कहसु रामबहादुर राय खूबे लूटऽ लहार।
आइल बाटे फगुनवा में लहरा लहरदार
लूटऽ लूटऽ आइ गइल बा बसंती बहार।
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रचना स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
बलिया,उत्तर प्रदेश
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