हर फलसफे पर रहता वक़्त का तकाजा है

हर फ़लसफे पर रहता वक़्त का तकाजा है
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वक़्त भी क्या बला है, वक़्त से पहले क्या है
हर फ़लसफ़े पर रहता वक़्त का ही तकाज़ा।

ज़नाब के क्या कहने बार-बार शुक्रिया करते
वे देख मुस्कुराते,हम मोहब्बत समझ जाते हैं।

हमें वक्त का इल्म न था मुस्कान भी कुटिल
वक़्त ऐसा था उनका कि सबसे बातें करते हैं।

काम निकल गया तो वो सबको भूल जाते हैं
जब तारीफों के पुल बांधे ,वे खुश हो जाते हैं।

वो कुछ कहते हम सहते ,मजबूरी में हंस देते
बड़ों-बड़ों को देखा झोपड़ी में मिलने जाते हैं।

ये वक़्त की बात है सूरमा भी बिलबिलाते हैं
अपना काम करते रहना ,सबके दिन आते हैं।

लगे रहें जो काम में बेवक्त ताले खुल जाते हैं
वक्त का भी वक़्त है,तो सबका वक्त आता है।

वक़्त ही इंसान के हालात बनाता बिगाड़ता
वक़्त सुधरते ही, सब कुछ ठीक हो जाता है।
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रचना स्वरचित एवं मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
भरौली ,बलिया ,उत्तरप्रदेश
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