मुश्किल से पाया हूं,तुम्हे खोने से डरता हूं

मुश्किल से पाया है,तुम्हें खोने से डरता हूं
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स्व में रीत कर ,तेरे छूने से ही रोज़ भरता हूं
मुश्किल से पाया है ,तुम्हें खोने से डरता हूं!

शिद्दत से मन के आईने को साफ रखता हूं
तेरे मिलने की उम्मीद में बनता हूं संवरता हूं!

अब मेरे अपने भी तो बड़ी हैरत से देखते हैं
जब चुपचाप सीढ़ियां चढ़ता और उतरता हूं!

पेन की स्याही सा जब कागज़ पर फैलता हूं
शायद हर बार तेरा चेहरा बन उभरता हूं!

इल्म है तू यहीं है मगर न जाने खौफ क्यूं है
बेवजह कमरे से तेरे बार-बार मैं गुजरता हूं!

मुझे नहीं था पता लेकिन दोस्त सब कहते हैं
मेरी आंखों में दिखता प्यार ,तुमसे करता हूं!

चाहे कोई कुछ भी कहे मैं प्यार का सागर हूं
लापरवाही में भी बेपनाह मोहब्बत करता हूं।
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रचना स्वरचित एवं मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित।।
राम बहादुर राय
बलिया,उत्तर प्रदेश
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