आज परिवेश बदल गया है

आज परिवेश बदल गया है!!
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आज परिवेश बदल गया है
लगा जमाना संभल गया है!

बुद्धि को ऐसे बांट रहा है
वो सबका कान काट रहा है!

अपना शरीर ढ़ांप रहा है
दूसरे का घर झांक रहा है!

अपने घर पर्दा कर रहा है
सबको बेपर्दा कर रहा है!

कैसी दुनिया में जी रहा है
दूसरे मूर्ख समझ रहा है!

वो नजर गड़ाए घूम रहा है
दूसरे का घर ढूंढ रहा है!

नदी है सागर समझ रहा है
फिर भी सिकन्दर बन रहा है!

हमने बहुत करके देखा है
अब समझ में आ रहा है!

सबको अपने आंक रहा है
वक्त अपना बर्बाद कर रहा है!

जिसे बेवकूफ समझ रहा है
तूं खुद बेवकूफ बन रहा है!

आज परिवेश बदल गया है
तूं खुद तमाशा बन रहा है!
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@राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तर प्रदेश
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