जी हां मैं गौरैया बोल रही हूं

जी हां मैं गौरेया ही बोल रही हूं!
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जी हां मैं गौरेया ही बोल रही हूं
बिना कहे कुछ बात कह रही हूं।

मैं खुश होकर फुदक-फुदकर
आंगन-घर कहीं भी चलती थी।

पहले घर-घर में मेरे लिए दाने
कहीं पानी भी रखा रहता था।

हर घर अपना समझ खाती थी
बड़े चाव से ताजा पानी पीती थी

अपने इन छोटे- छोटे पंखों पर
खूब नाज़ करती व इतराती थी।

वह दिन मैं जब याद करती हूं
अच्छे दिनों से बहुत डरती हूं।

कितना स्वार्थी हो गया ज़माना
अपनों से ही धोखा मैं पाती हूं।

पहले मेरी रक्षा की जाती थी
लेकिन मैं अब भी मारी जाती हूं।

पहले तो  मैं नहीं डरा करती थी
अब तो जान बचाती  फिरती हूं।

मेरे  उर  में  सदा  प्रेम  है बसता
फिर  भी  शिकार  की  जाती हूं।

मैं वैसे मानव  की  तलाश  में हूं
जो   मुझे   समझ   सकता  हो।

मैं  अब  हर  मानव  से  डरती हूं
फिर  छुप-छुप के रहा करती हूं।

मैं तो सबका  ही भला करती  हूं
पर धीरे - धीरे बिलुप्त हो रही हूं।

मेरी प्रजाति भी  अब ख़तरे में है
बचाने की गुहार सबसे करती हूं।

मैं  आपके  आंगन  की  शोभा हूं
छुपकर  के  गौरैया  बोल रही हूं।

मुझे भी जीने की  इच्छा  होती है
अपने जान की भीख मांग रही हूं।
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@राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश

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