कगवो के बोली सुहावन लागे
कगवो के बोलिया सुहावन लागे
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मन मोरा चहके तन मोरा बहके
कगवो के बोलिया सुहावन लागे !
फुदुके छोटकी चिरइया अंगनवा
बोलिया मिठाई नियन मीठ लागे !
कनखी पर ताकेली जब गोरिया
कारी रतियो टह-टह अंजोर लागे !
चैन ना आवे जब नाहीं लउकस
हंसत खेलत हियरा अन्हार लागे !
चढ़ते फगुनवा फूटल पचखिया
भंवरवो के मनवा बेकल लागे !
पुलुईं के पंतिया चढ़त फगुनहटा
सभ लोग के मनवा हड़होर मारे !
झपरझपर करे खेत में बलिया
सोनवा के रंग नियन सुघर लागे !
जब कुहू-कुहू बोले कोइलिया
मोर मनवा के पंछी हिलोर मारे !
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रचना स्वरचित, मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
बलिया,उत्तर प्रदेश
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