चढ़ते फगुनवा सयान भइल दिनवा
चढ़ते फगुनवा सयान भइल दिनवा
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चढ़ते फगुनवा सयान भइल दिनवा
बिहंसल किरिनिया, होई गइल भोर।
बहुत दिन सहनी अब बेधता देहिंया
दिनवा कटि जाला जागी भर रतिया।
कुछू पता नइखे दोचित बाटे मनवा
टुकुर-टुकुर तिकवतानी ए सजनवा।
उड़ि-उड़ि बइठे अंटरिया पर कागवा
हमरो जिनिगिया में आवता अंजोर।
झपर झपर लहरे गंहू-जौ के बलिया
टुकुर-टुकुर ताकेला रहिला चहुंओर।
सुर सुर सुरकेला मसूरी के पकलकी
खेत के डंड़ारी मारे छाकुन भरि जोर।
हाथ में लेके खाले चना के कचरिया
बगिया में होरहा फूंकाला चारू ओर।
सरसों के मोतिया उपरे बा उतराइल
ओकरे नीचवा तीसी हलरे झकझोर।
अनजो गोटाइल आइल शुभ दिनवा
घर-परिवार खुशी से भइल सराबोर।
फाग गवाये लगल डफ बाजे लगल
सबकर मन रंग-बिरंगी होखे लागल।
लड़िका-सयानो के फगुवाइल मनवा
जियरा पर केहू के नइखे चलत जोर।
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रचना स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित
राम बहादुर राय
बलिया,उत्तर प्रदेश
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