चढ़ी गइल फागुन के खुमार

चढ़ि गइल फागुन के खुमार
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आइल आइल बसन्ती बयार
ए बाबू ! तनी बचि के रहिहऽ

रंगबिरंगी बसन्त अब खिलल
धरती के चुनर धानी मिलल!

लागे लागल नीमन घर-दुवार
ए बाबू फागुन के लूटऽ लहार!

फूलवो रंगबिरंग के फुलाइल
भंवरो के मनवा ललचाइल !

चढ़ि गइल फागुन के खुमार
सुहावन लागे बसन्ती बहार!

कोइलर गावेली होके उतान
बीतल रतिया भइल बिहान!

आइल आइल बसन्ती बयार
ए बाबू तनि बचि के रहिहऽ !
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रचना स्वरचित,मौलिक
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राम बहादुर राय
बलिया,उत्तर प्रदेश
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