वह सबको अपना खास कहता है
वो सबको अपना खास कहता है
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ये जो इश्तिहारों में दिख रहा है
वह कोई इश्तिहार नहीं है!
जो बात अपने मुंह से कह रहा है
वो तो कोई बात भी नहीं है!
वह जो कुछ नहीं भी कह रहा है
उसमें भी कोई बात नहीं है!
यह तो उसके दरम्यान की बात है
वो बात कह ही नहीं रहा है!
हम अपने से ही मानकर बैठे हैं
वो तो इसे सोचता ही नहीं है!
उसके भरोसे पर भरोसा रखे हैं
वो इसे कब का बेच चुका है!
वो सबको अपना खास कहता है
वो खास समझता ही नहीं है!
वह हर बात चुनावी ही करता है
वो तो कोई नेता भी नहीं है!
वह तो एक बड़ा व्यापार करता है
वो सिर्फ बेचना ही जानता है!
हम उसे बिना समझे सब दे देते हैं
इसे भी करिश्मा समझता है!
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रचना स्वरचित और मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
बलिया,उत्तर प्रदेश
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