आइल फागुन के महिनवा हो. ..

आइल फागुन के महिनवन हो.....
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आइल फागुन के महिनवा हो,मौसम बइमान भइल जाता
टह-टह उगल फुलवा देखत,कलियो के मन खिलल जाता।

अइसन बुझाता कि भागल दुखवा,सुख के दिन अब आइल
मुरझाइल रहत रहल मनवा ,बुझाता दुख के दिन ओराइल।

हलुक भइल जाता देहिंया हो , मनवा बेकहल भइल जाता
जेने-जेने तिकवत बानी हम,त लाल-पियर-हरियर बुझाता।

अब त आमवो मोजराये लागल ,महुववो कोंचियाये लागल
कोइलर के तान सुनिके,अब लगनियो के दिन रखाये लागल।

अइसन बा फागुन के महिनवा हो,मौसम के रंग चढ़ल जाता
मुंह में दांत ना तबो बुझात नइखे,बुढ़वो जवान भइल जाता।

आइल फागुन के महिनवा हो,मौसम बइमान भइल जाता
टह-टह उगल फुलवा देखत,कलियो के मन खिलल जाता।
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रचना स्वरचित,मौलिक
@सर्वाधिकार सुरक्षित। ।
राम बहादुर राय
बलिया,उत्तर प्रदेश
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