बात पुरानी ही वह करते हैं

बात पुरानी ही वह कहते हैं!!!
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भूखे जब पेट की बात करते हैं
भरे पेट वाले नहीं समझ पाते!

भूल जाते हैं उन पुरानी यादों में
हर नई को वो पुरानी समझते हैं!

बड़े कसाला से जो मिला है मुझे
उसका भी नाफरमानी करते हैं!

ज़रा सा हमने लहज़ा क्या बदला
जंग हमसे खूब जुबानी करते हैं!

मानो ज़ख्म को भूल भी जाते हैं
पर बात पुरानी ही वह कहते हैं!

मैं दुःख-दर्द भी उन्हे बता देता हूं
भरे बाज़ार में मज़ाक उड़ाते हैं!

संजोग नहीं धूप-छांव का खेल है
हवा के रुख पे दीप उछल बैठता!

थोड़ा सा छलकेगा फिर रहने दो
बर्तन दूध का उबल के बैठता है!
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राम बहादुर राय
भरौली,बलिया,उत्तरप्रदेश
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