गूंगे बहरों के सभागार में
कुछ बोलें
गूंगे-बहरों के सभागार में
कुछ बोलने की आजादी
सीधा इसका अर्थ यही है
समय,शब्दों की बर्बादी!
आइये
कुछ कहें वहां,जहां पर
सही बातों का सम्मान हो
पोथी को सही अर्थों में
पढ़ने की वो आंख मिले!
बोलें हम
जन सामान्य की भाषा
पूरी हो सारी अभिलाषा
खास नहीं है कोई बाकी
बोलें भाषा की मां मिले!
तोड़ दो
वैसी भाषा को, जिससे
लोग गूंगे-बहरे बनते हैं
उठते हुए मस्तकों को
भाषायें झुकाती मिले!
जगा दो
अन्तर्मन में वर्तमान को
हां डूब न जाय यहां वह
जो है कलम का सिपाही
कलम को आजादी मिले!
@राम बहादुर राय
भरौली,उत्तर प्रदेश
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